तमिल फिल्म उद्योग को एक बड़ी क्षति का सामना करना पड़ा है क्योंकि महान अभिनेता थिरु दिल्ली गणेश ने हमें 80 वर्ष की आयु में छोड़ दिया। प्रसिद्ध अभिनेता का निधन 9 नवंबर 2024 को एक छोटी बीमारी के बाद उनके रामापुरम स्थित आवास पर हुआ। उनकी अनुपस्थिति से फिल्म जगत में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है जिसे भरना मुमकिन नहीं दिखाई दे रहा। उनकी अद्वितीय अभिनय दक्षता और थिएटर के प्रति उनका जुनून उन्हें हमेशा याद दिलाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि थिरु दिल्ली गणेश के भीतर ऐसे दुर्लभ अभिनय कौशल विद्यमान थे जो विभिन्न प्रवृत्तियों के दर्शकों से जुड़ने में सक्षम थे। उनके अभिनय में जो गहराई थी, उसका कोई सानी नहीं। गणेश के प्रति मोदी का श्रद्धांजलि संदेश एक भावनात्मक अलविदा था जिसमें उन्होंने अभिनय की दुनिया में गणेश के प्रभाव और विशिष्टता को रेखांकित किया।
थिरु दिल्ली गणेश का योगदान केवल फिल्मों तक सीमित नहीं था; वह थिएटर के प्रति भी समान रूप से समर्पित थे। अपने करियर में उन्होंने 400 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया और उन्होंने तमिलनाडु सरकार का प्रतिष्ठित कलैमामणि पुरस्कार भी हासिल किया। उनकी प्रसिद्धि उनके समय की शुरुआत दिल्ली में उनके काम के कारण थी, जहाँ से उन्होंने 'दिल्ली' उपनाम अपनाया। यह उपनाम प्रसिद्ध निर्देशक के. बालाचंदर ने उन्हें दिया था, जिन्होंने गणेश को ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
गणेश का नाम तमिल फिल्म उद्योग के अमर कलाकारों में शामिल होगा। उन्हें हाल ही में नादिगर संगम, दक्षिण भारतीय कलाकार संघ द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था। उनकी पत्नी, एक पुत्र और दो बेटियाँ उनका परिवार है। उन्होंने अपने जीवन में जिन ऊँचाइयों को छुआ, वे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। उनके निधन से तमिल फिल्म उद्योग ने ना केवल एक अभिनेता खोया बल्कि एक ऐसी शख्सियत को खोया जिसने सिनेमा और थिएटर दोनों में बराबर प्रभाव डाला।
उनके निधन के बाद, फिल्म जगत के अनेक हस्तियों और प्रशंसकों ने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के माध्यम से अपनी संवेदनाएँ व्यक्त की। यह स्पष्ट है कि थिरु दिल्ली गणेश की विरासत उनके अभिनय कौशल और सामाजिक योगदान के माध्यम से जीवित रहेगी। उनका जीवन और करियर सिनेमा के प्रति उनका जुड़ाव, और उनकी सफलता की कहानी जीवन की कठिनाइयों से लड़ते हुए हमेशा के लिए याद की जाएगी।
भाई ये आदमी तो सिर्फ अभिनय नहीं करता था, वो जिंदगी भर अपने किरदारों में जीता था। जब भी वो स्क्रीन पर आते तो लगता था जैसे वो वाकई वो किरदार हो गया हो। अब तो ऐसे अभिनेता बिल्कुल खत्म हो गए हैं।
रामापुरम में उनका घर अब एक धर्मशाला बन जाएगा 😢 उनकी आवाज़ और हंसी का जादू अब किसी के पास नहीं... उन्होंने तो हर फिल्म में अपनी आत्मा डाल दी थी 💔
दिल्ली से उपनाम मिला था लेकिन उनकी जड़ें तमिलनाडु में थीं। थिएटर के लिए वो हर रात जाते थे, फिल्म नहीं, थिएटर। उनके बिना अब बड़े रोल भी खाली लगेंगे।
क्या हम सच में समझ पाए हैं कि एक व्यक्ति कितना गहरा असर छोड़ सकता है? गणेश ने न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि एक जीवन दर्शन दिखाया - अपने काम के प्रति निष्ठा, बिना शोर के, बिना सोशल मीडिया के। आज की पीढ़ी को ये सीखना चाहिए।
उन्होंने 400 फिल्में की हैं और कलैमामणि भी मिला है और लाइफटाइम अचीवमेंट भी मिला है और उनकी पत्नी और बच्चे बचे हैं और उनका योगदान अमर है और उनकी आत्मा शांति पाए।
सुनो, गणेश जी जैसे अभिनेता के बारे में बात करते हुए हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि वो शुरुआत में बहुत गरीब थे। दिल्ली में बस कर थिएटर के लिए घूमते थे, कभी दो रोटी नहीं मिलती थी। फिर भी वो नहीं टूटे। उनकी हिम्मत और लगन ने उन्हें वो बनाया जो वो बने। आज के लड़के जब एक फिल्म में अच्छा नहीं चलता तो उठ जाते हैं, गणेश जी तो दस साल तक छोटे रोल करते रहे। उनकी जिंदगी ही एक फिल्म है।
प्रधानमंत्री के बयान में 'सानी नहीं' का उपयोग गलत है। सही शब्द है 'समान' या 'तुल्य'। और यह भी गलत है कि उन्हें 'दिल्ली' उपनाम किसी निर्देशक ने दिया - यह एक बहुत बड़ी गलत जानकारी है। गणेश जी को दिल्ली में अभिनय करने के बाद लोगों ने उन्हें 'दिल्ली गणेश' कहना शुरू कर दिया था, न कि किसी ने उपनाम दिया। यह इतिहास का विकृत रूप है।
ये आदमी मर गया और सब रो रहे हैं... पर जब वो जिंदा थे तो किसी ने उनकी फिल्म नहीं देखी थी। अब लोगों ने उनकी सारी फिल्में डाउनलोड कर ली हैं। ये हमारी संस्कृति है। बाप रे... जब तक जिंदा हैं तो कोई नहीं देखता, मर गए तो ट्रिब्यूट्स चलाने लगे।