अधिग्रहण क्या है? आसान भाषा में समझिए

जब एक बड़ी कंपनी दूसरी कंपनी का भाग या पूरी कंपनी खरीद लेती है, तो इसे अधिग्रहण कहा जाता है. इस बात से दोनों कंपनियों की मालिकी बदल जाती है और अक्सर नए व्यापार मॉडल बनते हैं. लोग सोचते हैं कि सिर्फ बड़े बैंकों या अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को ही यह काम आता है, लेकिन छोटे‑मोटे कारोबार भी अपने प्रतिस्पर्धी को खरीद कर ताकत बढ़ा लेते हैं.

अधिग्रहण करने के कई कारण होते हैं. कभी बाजार में नया प्रोडक्ट जल्दी लाने के लिए, कभी नई तकनीक या ब्रांड हासिल करने के लिये, और कभी लागत घटाने या स्केलेबिलिटी बढ़ाने के लिये. अगर आप सोच रहे हैं कि आपका छोटा बिज़नेस भी ऐसा कर सकता है, तो पहले इस प्रक्रिया को समझना जरूरी है.

अधिग्रहण के प्रमुख चरण

1. मूल्यांकन (Valuation) – लक्ष्य कंपनी की कीमत तय करने के लिए उसकी आय, संपत्ति और भविष्य की संभावनाओं का आँकलन किया जाता है। इस समय अक्सर एक्सपर्ट फर्म या इन‑हाउस एनालिस्ट मदद करते हैं.

2. ड्यू डिलिजेंस (Due Diligence) – कानूनी, वित्तीय और ऑपरेशनल दस्तावेजों की गहन जांच होती है। यहाँ पर छिपी हुई देनदारी या जोखिम पहचानना ज़रूरी होता है.

3. सौदा तय करना (Negotiation) – दोनों पक्ष कीमत, भुगतान के तरीके (कैश, शेयर, या दोनों) और शर्तें तय करते हैं। अगर बात दोस्ती से होती है तो इसे ‘फ्रेंडली अधिग्रहण’ कहते हैं.

4. नियामक मंजूरी – भारत में Competition Commission of India (CCI) जैसी एजेंसियां बड़ी लेन‑देनों को जांचती हैं। यदि वे समझते हैं कि यह बाज़ार पर असर नहीं डालेगा, तो मंजूरी दे देते हैं.

5. एकीकरण (Integration) – अधिग्रहण के बाद दो कंपनियों की टीमों, प्रक्रियाओं और सिस्टम को मिलाना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। सफल इंटीग्रेशन से ही लाभ मिलते हैं.

भारत में हालिया अधिग्रहण उदाहरण

2024 में इन्फोसिस ने एक छोटे AI स्टार्ट‑अप को खरीद कर अपनी क्लाउड सर्विसेज़ को मजबूत किया. इस कदम से इन्फोसिस की तकनीकी क्षमताओं में तेज़ी आई और ग्राहकों को नई सेवाएँ मिलीं.

दूसरा उदाहरण है वोक्स वॉटर ने 2023‑24 में एक बड़े जल शुद्धिकरण कंपनी को अधिग्रहित किया. इससे उनका नेटवर्क दक्षिण भारत में बढ़ा और पानी की आपूर्ति बेहतर हुई.

ये केस दिखाते हैं कि अधिग्रहण सिर्फ बड़ी कंपनियों के लिए नहीं, बल्कि मध्य‑स्तर के बिज़नेस के लिए भी विकास का साधन है. अगर आप अपनी कंपनी को आगे ले जाना चाहते हैं तो सही लक्ष्य चुनें, पूरी ड्यू डिलिजेंस करें और इंटीग्रेशन की योजना पहले से बनाकर रखें.

अधिग्रहण करने से पहले यह सवाल पूछना चाहिए – क्या ये कदम आपके दीर्घकालिक लक्ष्य के साथ मेल खाता है? अगर हाँ, तो सही टीम और सलाहकारों के साथ आगे बढ़ें. याद रहे कि हर अधिग्रहण में जोखिम होता है, पर जब ठीक से किया जाए तो रिटर्न बहुत बेहतर मिल सकता है.

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