बैंक बंदी: क्या है और क्यों होती है?

जब बैंक बंदी, वित्तीय संस्थानों के संचालन को रोकना या सीमित करना, अक्सर तरलता की कमी या नियामक कार्रवाई के कारण. इसे कभी‑कभी बैंक लॉकडाउन भी कहा जाता है। इसी समस्ये से जुड़े दो महत्वपूर्ण घटक हैं रिज़र्व बैंक, भारत का मौद्रिक नियामक, जो बैंकों की तरलता और स्थिरता का पर्यवेक्षण करता है और डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन ट्रांसफ़र, मोबाइल वॉलेट और यूपीआई जैसे इलेक्ट्रॉनिक लेन‑देनों के तरीके. इनके बीच कई सैंटिक ट्रिपल बनते हैं: बैंक बंदी आर्थिक तनाव को बढ़ाती है, रिज़र्व बैंक बैंकों की नकदी उपलब्धता को सुनिश्चित करता है, और डिजिटल भुगतान विकल्प बंदी के दौरान लेन‑देन जारी रखने में मदद करते हैं। इस टैक में हम देखेंगे कि किस तरह से बैंकों की अचानक बंदी किसान ऋण, छोटे व्यवसाय और आम जनता के पैसों पर असर डालती है, और किस स्तर पर सरकार के हस्तक्षेप से स्थिति सुधर सकती है। हम यह भी जानेंगे कि फसल ऋण संरचना, एनएफएस की भूमिका, और स्टेट बैंक की बैलेंस शीट कैसे प्रभावित होती है। साथ ही, हम उन टेक्नोलॉजी‑आधारित समाधान की बात करेंगे जो ग्राहक को नकदी‑संकट से बचाते हैं: यूपीआई का 24‑घंटे खुला होना, एटीएम नेटवर्क का पुनर्व्यवस्थापन, और मोबाइल बैंकिन्ग ऐप्स की सुरक्षा विशेषताएं। इन सब बातों का समग्र दृश्य आपको इस टैग पेज पर मिलने वाले लेखों की श्रृंखला समझने में मदद करेगा, जहाँ प्रत्येक लेख बैंक बंदी के किसी न किसी पहलू – नियामक नीतियां, केस स्टडी, या व्यक्तिगत अनुभवों – को गहराई से खोजता है।

जुलाई 2025 में भारत के बैंक बंदी का राज्यवार पूरा कैलेंडर