गोवर्धन पूजा 2024: तारीख, स्थल, और गोवर्धन परिक्रमा कैसे करें

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गोवर्धन पूजा 2024: तारीख, स्थल, और गोवर्धन परिक्रमा कैसे करें

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या गोवर्धन परिक्रमा भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान कृष्ण की प्रमुख लीलाओं में से एक को मनाने का अवसर प्रदान करता है। गोवर्धन पूजा का प्रमुख उद्देश्य प्रकृति और उसके तत्वों के प्रति आभार और आदर व्यक्ति करना है। इस पर्व में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है, जिसे करने से भक्तों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है। यह पर्व नई ऊर्जा और आध्यात्मिक जागृति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

गोवर्धन परिक्रमा का धार्मिक महत्व

गोवर्धन परिक्रमा भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र देव के विरोध में किए गए अद्वितीय कार्य का प्रतिनिधित्व करती है। इसका मुख्य तात्पर्य यह है कि प्रकृति का सम्मान और सहेजकर रखने का महत्व बड़ी-बड़ी महाशक्तियों से भी अधिक होता है। जब इंद्र देव ने गोकुलवासियों पर प्रचंड वर्षा का प्रहार किया, तब भगवान कृष्ण ने अपने लीलाओं के माध्यम से गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी की रक्षा की थी। इस लघु किंवदंती से यह प्रेरणा मिलती है कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और उनकी पूजा हमें हर प्रकार के संकट से बचा सकती है।

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा मथुरा जिले में की जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह यात्रा मथुरा जिले में गोवर्धन पर्वत के चारों ओर घूमने की होती है और इसकी कुल लंबाई 22 किलोमीटर है। भक्त इसे पूरी श्रद्धा के साथ पूरा करते हैं, जिसमें आमतौर पर लगभग 5 से 6 घंटे लग सकते हैं। महत्त्वपूर्ण पूजा स्थलों और मंदिरों के दर्शन करते हुए यह परिक्रमा पूरी की जाती है। परिक्रमा की शुरुआत मानसी-गंगा कुंड से होती है और भगवान हरीदेव के मंदिर तक चलती है। यह यात्रा आध्यात्मिक शांति और अद्वितीय आनंद की अनुभूति देने वाली होती है।

पूजा की विधि और रीति-रिवाज

गोवर्धन पूजा का प्रमुख आकर्षण गाय के गोबर से बनाई गई गोवर्धन श्रृंगार है, जिसे श्रद्धालु एक प्रतीकात्मक पर्वत की तरह बनाते हैं। इसकी पूजा की जाती है और भक्त इसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। भजन और कीर्तन के मंत्र पाठ के बीच पूजा सम्पन्न की जाती है और धुएं के माध्यम से भगवान को लोभ किया जाता है। इस दौरान भोग भी तैयार किया जाता है, जिसे भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर सर्वकालिक प्रसाद के रूप में सभी भक्तों के बीच बांटा जाता है। गोवर्धन पर्वत के भंड़ारों में लौंया, लड्डू और अन्य मिठाइयों के ढेर लगाए जाते हैं, जो भगवान के प्रति प्रेम और नवाचारी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं।

मथुरा पहुंचने के उपाय और यात्रा मार्ग

मथुरा पहुंचने के उपाय और यात्रा मार्ग

अगर आप गोवर्धन पूजा और परिक्रमा में भाग लेना चाहते हैं तो आप मथुरा पहुँचकर वहां से गोवर्धन पर्वत की ओर जा सकते हैं। मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और दिल्ली, आगरा जैसे प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।दिल्ली से मथुरा की दूरी लगभग 183 किलोमीटर है और राष्ट्रीय राजमार्ग 19 से यहाँ पहुंचा जा सकता है।

श्रद्धालु रेलगाड़ी के माध्यम से भी मथुरा पहुंच सकते हैं, जहाँ से गोवर्धन पर्वत बस या टैक्सी किराए पर ले जाकर आसानी से पहुंचा जा सकता है। मथुरा जंक्शन से गोवर्धन की दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। परिक्रमा के दिनों में यहाँ की सडकें रंग-बिरंगी रोशनी और धार्मिक आयोजनों की गूंज से सराबोर रहती हैं। यह समय आनंद और उत्सव का होता है जो हर भक्त के मन में एक अद्वितीय अनुभूति का संचार करता है।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी मान्यताएं और आस्था

गोवर्धन पूजा से जुड़ी मान्यताएं और आस्था

गोवर्धन पूजा के दिन लोग घरों में ही नहीं बल्कि सामूहिक स्थानों पर भी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन आटा, गुड़, चावल, घी, दूध और मक्का से विविध विद्वानों के दिल से तैयार किया जाता है, जो भगवान को अर्पित किया जाता है। इस प्रसाद के माध्यम से आशा की जाती है कि भगवान हर भक्त की कामनाएं पूरी करेंगे और हर घर में समृद्धि, खुशी और स्वास्थ्य का वास होगा।

यह पर्व धार्मिक समारोह के साथ-साथ समुदायिक सदभावना और एकता का भी प्रतीक होता है, जो सभी धर्मप्रेमियों को एक धागे में पिरोकर एक साझा मंच प्रदान करता है। सभी श्रद्धालुगण एकत्र होकर संगठित भावना के साथ पर्व समारोह में हिस्सा लेते हैं और इस पावन पर्व को एकत्योहार के रूप में मनाते हैं। इस दौरान, सभी प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं को तोड़कर पूरे देश में सह-अस्तित्व की भावना का प्रसार होता है।

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