अगर आप झारखंड के राजनैतिक परिदृश्य को समझना चाहते हैं तो JMM एक अहम नाम है। यह पार्टी 1960 की दशक से क्षेत्रीय मुद्दों पर काम कर रही है और स्थानीय लोगों की आवाज़ बनकर उभरी। आज हम देखेंगे कि इस पार्टी का फोकस क्या है, चुनाव में इसकी रणनीति कैसे चलती है और आगे के सालों में क्या बदलाव आ सकते हैं।
पहले बात करते हैं उसके मुख्य एजेंडा की। JMM हमेशा से झारखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा सुधार पर जोर देता आया है। पार्टी का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की हालत ठीक नहीं, इसलिए नई स्कूली सुविधाएं बनानी जरूरी है। इसी तरह अस्पतालों में उपकरणों की कमी को दूर करने के लिए फंडिंग मांगते हैं।
साथ ही, जमीनी स्तर पर जलसंसाधन और कृषि समर्थन भी उनके काम का हिस्सा है। किसान अक्सर सूखे से परेशान रहते हैं, इसलिए JMM ने सिंचाई परियोजनाओं को तेज़ी से लागू करने की मांग की है। इन मुद्दों के अलावा, आदिवासी अधिकारों को सुरक्षित रखना और भूमि अधिग्रहण में न्याय सुनिश्चित करना भी पार्टी की प्राथमिकताओं में रहता है।
अब देखते हैं कि JMM अगले चुनाव में क्या कर रहा है। हाल ही में उन्होंने युवा वोटर को आकर्षित करने के लिए डिजिटल कैंपेन शुरू किया है – सोशल मीडिया पर छोटे-छोटे वीडियो, स्थानीय भाषाओं में संदेश और लाइव संवाद। ये तरीका बड़े शहरों में भी काम करता दिख रहा है जहाँ लोग तेज़ जानकारी चाहते हैं।
परंपरागत तौर पर पार्टी ने गाँव‑गाँव में व्यक्तिगत मुलाकातें करना पसंद किया। अब यह मिश्रित मॉडल (ऑनलाइन + ऑफलाइन) उनके लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। साथ ही, उन्होंने गठबंधन की भी संभावनाएं खोली हैं ताकि बड़े राष्ट्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सीटों को सुरक्षित रखा जा सके।
अगर आप वोट देने का सोच रहे हैं तो JMM की नीतियों पर एक नजर डालें – क्या उनके वादे आपके इलाके में वास्तविक सुधार ला सकते हैं? स्थानीय लोगों की राय, विकास के ठोस उदाहरण और पार्टी की पारदर्शिता को देखना ज़रूरी है।
संक्षेप में कहा जाए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा का फोकस क्षेत्रीय मुद्दों पर ही रहता है, लेकिन वह नई तकनीक और गठबंधन से अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह समझने के बाद आप बेहतर चुनावी फैसला ले सकते हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को राज्य विधानसभा में विश्वास मत जीत कर अपने पक्ष में 45 विधायकों का समर्थन हासिल किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) द्वारा नेतृत्वित सत्ताधारी गठबंधन में 45 विधायक हैं, जबकि भाजपा नेतृत्व वाले विपक्ष के पास 30 सदस्य हैं। इस जीत से हेमंत सोरेन की सरकार को स्थिरता मिली है।