जब चुनाव खत्म होते हैं तो हर पार्टी का पहला सवाल रहता है – ‘हमारी हार क्यों हुई?’ इस प्रश्न के जवाब में अक्सर कई चीज़ों को देखना पड़ता है: मतदाता की उम्मीदें, कैंपेन रणनीति, स्थानीय मुद्दे और राष्ट्रीय माहौल। चलिए समझते हैं कि इन कारकों ने हालिया लोकसभा चुनाव में क्या भूमिका निभाई।
पहला कारण है वोटर असंतोष. जब सरकार या उम्मीदवार स्थानीय समस्याओं को हल नहीं कर पाते, तो मतदाता बदलते हैं। उदाहरण के तौर पर, कई राज्य में बुनियादी सुविधाओं की कमी और नौकरी की घटती संभावनाएं लोगों को निराश करती हैं। दूसरा कारण है कैंपेन का असर. सोशल मीडिया, रैलियां या विज्ञापन जितना भी हो, अगर संदेश साफ नहीं हुआ तो मतदाता भ्रमित रह जाते हैं। तीसरा प्रमुख बिंदु है सहयोगियों की कमी. गठबंधन में छोटे दलों के समर्थन न मिल पाना अक्सर बड़ी पार्टी को कमजोर कर देता है। इन तीन पहलुओं को समझे बिना जीत का अनुमान लगाना मुश्किल है।
हारी हुई पार्टियों को सबसे पहले आत्मनिरीक्षण करना चाहिए – कौन से क्षेत्रों में गिरावट आई, किस वर्ग ने वोट नहीं दिया और क्यों? फिर अपने मंच को पुनः परिभाषित करें। युवा वोटरों तक पहुंचने के लिए डिजिटल कैंपेन को मजबूत बनाना जरूरी है। साथ ही, स्थानीय स्तर पर विकास कार्यों की योजना बनाकर लोगों का भरोसा जीतना चाहिए। अंत में, गठबंधन की संभावनाओं पर पुनर्विचार करके रणनीति बदलनी चाहिए; कई बार छोटे दलों के समर्थन से बड़ा फर्क पड़ता है।
अगर आप आम नागरिक हैं तो इन बातों को ध्यान में रखें: अपने वोट का सही इस्तेमाल करें, उम्मीदवार के वादे और उनकी पिछली कामगिरी देखें। अगर पार्टी ने आपका भरोसा तोड़ दिया हो तो बदलाव की मांग करना भी लोकतंत्र का हिस्सा है। इस तरह से ही हम राजनीति को अधिक जवाबदेह बना सकते हैं।
अंत में यह कहना सही होगा कि लोकसभा हार एक सीख है, न कि अंत। जो पार्टियां अपनी गलतियों को समझकर सुधार करती हैं, वे आगे के चुनावों में फिर से जीत की राह पर चल सकती हैं। इस प्रक्रिया को देखना हर भारतीय के लिए जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब हम सब मिलकर बदलाव की दिशा तय करें।
राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने चुनाव से पहले वादा किया था कि अगर उनकी जिम्मेदारी वाली सात लोकसभा सीटों में से किसी एक पर भी हार मिली तो वे इस्तीफा देंगे।