आख़िर कब से राजनीति में झगड़े सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं रहे? हर चुनाव, हर आंदोलन में गोली‑बारूद, धावा-डोल देखना आम हो गया है। लोग सोचते हैं कि ये सब ‘राजनीति का हिस्सा’ है, लेकिन असली समस्या तो इस हिंसा के पीछे की सोच में है – जीत के लिए किसी भी हद तक पहुँच जाना।
पहला कारण है मतदाता आधार को जलाना। पार्टियों को अक्सर छोटे‑छोटे वोट बैंक मिलाते हैं, और उनके बीच का टकराव अक्सर हिंसक रूप ले लेता है। दूसरा, सोशल मीडिया पर अफ़वाहें जल्दी फ़ैलती हैं; एक झूठी खबर भी सड़कों में हंगाम बना देती है। तीसरा, कानून की ढिलाई – जब अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती तो दुबारा वही काम दोहराते हैं। इन तीनों कारणों से हिंसा का चक्र चल पड़ा है।
सबसे पहला कदम है स्थानीय स्तर पर ‘शांतिपूर्ण सभा’ की व्यवस्था करना, जहाँ सभी दल एक‑दूसरे को सुन सकें। दूसरा, चुनाव आयोग को तुरंत ठंडा करने वाले आदेश जारी करने चाहिए और उल्लंघन करने वालों को कड़ी सज़ा देनी चाहिए। तीसरा, नागरिकों को भी भागीदारी बढ़ानी चाहिए – अगर हम अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे तो कौन करेगा? छोटे‑छोटे क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करना, सही जानकारी देना बहुत ज़रूरी है।
एक और असरदार तरीका है ‘स्थानीय निगरानी समितियाँ’ बनाना। ये समिति हर बड़े इवेंट या रैलि पर मौजूद रहकर अनावश्यक हिंसा रोक सकती हैं। जब स्थानीय लोग खुद जिम्मेदारी लें तो पुलिस का बोझ भी कम होता है और सुरक्षा बेहतर होती है।
अक्सर हम देखते हैं कि मीडिया sensationalism को बढ़ावा देता है, जिससे लोगों में डर बनता है। अगर रिपोर्टिंग तथ्य‑आधारित हो और अफ़वाहों को नहीं फैलाया जाए तो तनाव घटेगा। इस दिशा में पत्रकारों की भी बड़ी ज़िम्मेदारी है – उन्हें संतुलित खबरें देना चाहिए।
हिंसा का आर्थिक असर भी कम नहीं है। हर बार जब चुनाव में दंगे होते हैं, तो व्यापार बंद हो जाता है, लोग काम से दूर रह जाते हैं और जीवन‑यापन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए सरकार को आर्थिक नुकसान की गणना कर के दंड लागू करने चाहिए, ताकि कोई भी हिंसा का ‘फायदा’ न देख सके।
अंत में यह याद रखें कि लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट देना नहीं, बल्कि शांति से विचारों का आदान‑प्रदान करना है। जब हम सब मिलकर इस बात को समझेंगे तो राजनैतिक हिंसा धीरे‑धीरे कम होगी और राजनीति फिर से स्वस्थ मार्ग पर आएगी।
बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति के बीच चर्चित अभिनेता शांत खान की भीड़ द्वारा बेरहमी से हत्या कर दी गई। शांत खान अपने समय के मशहूर अभिनेता थे जो बांग्लादेश के संस्थापक पिता शेख मुजीबुर रहमान का किरदार निभाते थे। उनकी मृत्यु ने बांग्लादेशी फिल्म उद्योग और आम जनता को झकझोर दिया है।