जब 19 अप्रैल से 1 जून तक देश भर में मतदान का कण्ठस्थ होना शुरू हुआ, तो कई लोग आशा कर रहे थे कि भाजपा "400 paar" की लकीर को फिर से पार कर लेगी। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव परिणाम ने एकदम अलग तस्वीर पेश कर दी – सत्ता में बड़ा बदलाव, नई गठबंधन‑राजनीति और कई राज्यों में ऐतिहासिक उलटफेर।
राज्यवार परिणाम: उझाल और उलटफेर
सबसे बड़ा आश्चर्य उत्तर प्रदेश में आया। जहाँ 2019 में भाजपा ने 62 में से 62 सीटें जीत ली थीं, 2024 में वही पर इंडिया ब्लॉक ने 43 सीटें हासिल कीं। सपा ने 36 सीटों के साथ प्रमुखता पकड़ ली, भाजपा 33, कांग्रेस 7, आरएलडी 2 और अपना दल 1 सीट जीतकर संकेत दिया कि राज्य में दोधारी राजनीति फिर से उभर रही है।
महाराष्ट्र में सिचुएशन और जटिल था। शिवसेना (उधव ठाकरे) ने 10, कांग्रेस 12, और एनसीपी (सुनंदा) ने 1 सीट जीती। वहीं बीजेपी ने 11 सीटें, शरद पवार के नेता के तहत एनसीपी 7, और शिवारामगढी (बाबासाहेब) की शिबिर से अन्य शिवसेना 6। इस विभाजित परिदृश्य ने यह स्पष्ट कर दिया कि महाराष्ट्र में कोई भी एक पक्ष पूरी तरह से सशक्त नहीं हो पाया।
पश्चिम भारत में गुजरात ने 60.74% टर्नआउट के साथ अपेक्षाकृत संतुलित मतदान देखा, जबकि बिहार में केवल 56.28% वोटर टर्नआउट आया, जो राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे था। दूसरी ओर, दिक्षिण में आंध्र प्रदेश (81.78%), असम (81.87%) और अरुणाचल प्रदेश (81.07%) ने रिकॉर्ड टर्नआउट दर्ज किया, जिससे दिखता है कि एलेक्शन कमिशन की मेहनत का फल मिलने में कोई कमी नहीं रही।
वोटर टर्नआउट, गठबंधन और भविष्य की राजनीति
भाजपा ने 2024 का मंचन "GYAN" सूत्र – गरिब, युवा, annadata, नारी – के इर्द‑गिर्द किया। यह एक व्यापक कैम्पेन थी, लेकिन एंटी‑इंसीडेंसी और विपक्ष की एकजुटता ने इसे काफी हद तक सीमित कर दिया। पार्टी ने 243 सीटें ही जीत पाई, जबकि 2019 में 306 थी, और अभी भी एब्सोल्यूट मेजॉरिटी नहीं हासिल कर पाई। इसका मतलब है अब उन्हें NDA के छोटे‑छोटे सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ेगी, और इस गठबंधन की स्थिरता ही अगले पाँच सालों में नीति‑निर्माण की कुंजी होगी।
इंडीया ब्लॉक, जो सपा, कांग्रेस, RLD और कई क्षेत्रीय पार्टियों का मिलाजुला गठबंधन है, ने 230 सीटों पर कब्ज़ा जमाया। यह आंकड़ा 2019 की तुलना में कई गुना बढ़ा है और दिखाता है कि विपक्ष अब सिर्फ दो‑तीन पार्टियों तक सीमित नहीं रहा। इस नई ताकत से 18वें लोकसभा में बहसें तेज़ होंगी, और संसद में सही‑सही मोशन पास करना आसान नहीं रहेगा।
इलेक्शन कमिशन ने 42 विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत आँकड़े जारी किए – प्रत्याशी‑वार वोट शेयर, लिंग‑आधारित मतदान पैटर्न, क्षेत्रीय प्रवृत्तियां आदि। इन आंकड़ों से पता चलता है कि युवा मतदाता अब अधिक चिंतनशील हो रहे हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि‑संबंधी मुद्दे अभी भी प्रमुख हैं। महिला वोटर ने भी "नारी" खंड को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भविष्य की नीतियों को जनसांख्यिकी के अनुसार पुनः स्वरूपित करना पड़ेगा।
सारांश में, 2024 के लोकसभा चुनाव ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी है। भाजपा को अब गठबंधन के भीतर सामंजस्य बनाये रखना होगा, जबकि विपक्षी ब्लॉक को अपनी एकजुटता को कायम रखते हुए प्रभावी ढंग से नीति‑परिवर्तन लाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही मतदाता के व्यवहार में आई बदलावें भविष्य की चुनावी रणनीतियों को बिल्कुल नया रूप दे सकती हैं।
BJP 243 सीटें लेकर आया और अब नेता बनने की बात कर रहा है जबकि वोटर ने साफ कह दिया कि एकल अधिकार नहीं चाहिए
ये सब गठबंधन की बात कर रहे हैं, पर क्या कोई देख रहा है कि ये सारे पार्टियाँ एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं? अब एकजुट हो गए? ये तो बस एक अस्थायी शाम का बादल है, जो बारिश के साथ ही उड़ जाएगा! लोगों को याद रखना चाहिए कि जब तक आप अपनी जमीन, अपनी भाषा, अपनी पहचान के लिए लड़ेंगे, तब तक कोई ब्लॉक आपको बचाएगा नहीं! ये सब तो बस एक नया चक्कर है-एक बार फिर से बड़े बाप की आवाज़ सुनने का!
अरे भाई! ये जो युवाओं ने वोट दिया, वो तो बस एक नया वक्त चाहते थे! बस एक बार फिर से एक तरफ नहीं देखना है! आज का युवा किसी का बेटा नहीं, अपना भविष्य बनाने वाला है! और अगर ये ब्लॉक असली ताकत बन गया, तो अब बात बदल जाएगी! बस एक बार इंतज़ार करो-अब तो देखोगे कि कैसे लोग अपने आप को बदल रहे हैं!
मैं इस चुनाव को एक नए युग की शुरुआत समझता हूँ। जिस तरह से ग्रामीण इलाकों में कृषि मुद्दे और महिलाओं की भागीदारी ने नतीजे बदले, वो बहुत ज़रूरी है। लेकिन सवाल ये है कि अब इस नई ऊर्जा को कैसे संरचित किया जाए? क्या हम सिर्फ वोट देकर ही खुश हो जाएंगे, या फिर अगले पाँच सालों में भी नियमित रूप से नीतियों को चुनौती देंगे? इंडिया ब्लॉक के अंदर जो विविधता है, वो एक ताकत है, लेकिन वो तभी बनेगी जब हर पार्टी अपने अहंकार को छोड़ दे। ये सिर्फ एक चुनाव नहीं, ये एक जागृति है-अब ये जागृति बनी रहेगी या बस एक चिंगारी रह जाएगी, ये हम सब पर निर्भर करता है।
महाराष्ट्र के विभाजन का आंकड़ा बहुत दिलचस्प है-शिवसेना के दो टुकड़े हो गए, और दोनों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए। ये दिखाता है कि क्षेत्रीय पार्टियों की आंतरिक टक्कर अब राष्ट्रीय चुनावों को भी प्रभावित कर रही है। और गुजरात का 60.74% टर्नआउट? ये बताता है कि जब निर्णय लेने का मौका मिले, तो लोग अपनी आवाज़ उठाने को तैयार हैं। अब इस ऊर्जा को नीतिगत बदलाव में बदलना होगा-अगर विपक्ष अपनी एकजुटता बनाए रखता है और सरकार गठबंधन के भीतर सहयोग की बजाय बातचीत करती है, तो भारत के लिए ये एक असली मोड़ हो सकता है। ये चुनाव सिर्फ जीत-हार की बात नहीं, ये एक नए सामाजिक समझ की शुरुआत है।