नाटो जमीन पर पहली बार ड्रोन मार गिराए गए, चार एयरपोर्ट थमे, सवाल सुरक्षा पर
एक रात में हालात कैसे उलटते हैं, पोलैंड ने देख लिया। 10 सितंबर 2025 की सुबह तड़के जब दर्जनभर से ज्यादा रूसी ड्रोन पोलिश सीमा लांघते पकड़े गए, तो देश ने कुछ घंटों के लिए अपना हवाईक्षेत्र ही बंद कर दिया। यह पहला मौका था जब नाटो सदस्य देश के ऊपर घुसे ड्रोन मार गिराए गए। वारसॉ चोपिन—जो पोलैंड का सबसे व्यस्त एयरपोर्ट है—लगभग दो घंटे रुका और फिर सुबह 7:30 बजे लोकल टाइम से उड़ानें धीरे-धीरे पटरी पर आईं।
पोलिश प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने हालात को गंभीर बताया, लेकिन साफ किया कि किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। जवाबी कार्रवाई में पोलैंड के साथ नाटो के लड़ाकू विमानों ने भी हिस्सा लिया। डच F-35 जेट्स को इंटरसेप्शन में लगाया गया। रातभर चले ऑपरेशन के बाद पुलिस, बॉर्डर गार्ड्स और फायरफाइटर्स ने कई संभावित क्रैश साइट्स पर मलबा खोजा और इलाके को सुरक्षित किया।
उड़ानें सिर्फ वारसॉ में नहीं रुकीं। वारसॉ मोडलिन, रेज़जॉव-यासोंका और ल्यूब्लिन एयरपोर्ट भी अलर्ट पर रहे। रेज़जॉव खास तौर पर संवेदनशील रहा, क्योंकि यहां अमेरिकी सैन्य उपस्थिति है और यही हब यूरोप से यूक्रेन तक जाने वाली सैन्य सप्लाई का सबसे अहम ट्रांजिट पॉइंट बन चुका है। सुरक्षा विश्लेषकों ने इसे आकस्मिक नहीं, बल्कि लक्ष्य चुनकर किया गया ऑपरेशन माना—रूस की वही “सैलेमी स्ट्रैटेजी”, जिसमें हर बार एक कदम आगे बढ़ाकर प्रतिक्रियाएं परखी जाती हैं।
इंटेलिजेंस ब्रीफिंग्स में इस घुसपैठ में इस्तेमाल प्लेटफॉर्म्स को “Gerbera-प्रकार” के ड्रोन बताया गया। रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (RUSI) के जस्टिन ब्रोंक और सिबिलाइन के जस्टिन क्रम्प के मुताबिक, पैमाने और समन्वय को देखकर यह नेविगेशन गलती नहीं लगती। कई वेव्स में उड़ान, कम ऊंचाई का प्रोफाइल और सीमा के पास टारगेटिंग—ये सब इरादा दिखाते हैं।
यह घटना 2022 के प्रेज़ेवूद (Przewodów) विस्फोट की याद दिलाती है, जब एक भटकी मिसाइल के टकराने से दो लोगों की जान गई थी। हाल के वर्षों में रोमानिया की सीमा पर भी यूक्रेन पर हमलों के दौरान ड्रोन के मलबे कई बार मिले। फर्क इतना है कि इस बार पोलैंड ने सक्रिय इंटरसेप्शन किया और नाटो आधारभूमि पर ड्रोन गिराए गए—यही बात इसे एक नए, बेचैन करने वाले अध्याय में बदल देती है।
रणनीतिक असर: नाटो की रेडलाइन, पोलैंड की ढाल और यूरोप की उड़ानें
सबसे बड़ा सवाल—नाटो इसकी रेखा कहां खींचता है? आर्टिकल 5 सामूहिक रक्षा की बात करता है, लेकिन उसके लिए “आर्म्ड अटैक” की दहलीज पार होना जरूरी है। बिना हताहत हुए इंटरसेप्टेड ड्रोन उस दहलीज से नीचे रह सकते हैं। यहां आर्टिकल 4—यानी सदस्य देशों का परामर्श—अधिक प्रासंगिक दिखता है। ऐसे मामलों में नाटो आम तौर पर एयर-पिक्चर साझा करता है, निगरानी बढ़ाता है, और जरूरत पड़े तो एयर डिफेंस एसेट्स की तैनाती समायोजित करता है।
पोलैंड ने इस रात अपनी वायु-रक्षा की परतों का असल इम्तिहान देखा। रिपोर्टों के मुताबिक “SkyCTRL” नाम का एंटी-ड्रोन सिस्टम 18 महीने से फंडिंग के अभाव में अपग्रेड नहीं हो पाया और हमले के समय लगभग निष्क्रिय था। यही वह गैप है, जिसे कम ऊंचाई पर उड़ते, कम कीमत वाले ड्रोन निशाना बनाते हैं। बड़े पैमाने पर सस्ते ड्रोन भेजना और उन्हें रोकने के लिए विरोधी को महंगे मिसाइल दागने पर मजबूर करना—यह असमान लागत की रणनीति रूस बार-बार इस्तेमाल करता रहा है।
पोलैंड ने पिछली एक-दो साल में “Wisła” (Patriot) और “Narew” (शॉर्ट-रेंज) कार्यक्रमों से अपनी हाई-एंड मिसाइल डिफेंस मजबूत की है, लेकिन लो-एंड खतरे—यानी छोटे ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन्स, और मिनी-UAV—के लिए जामर्स, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, पोर्टेबल मिसाइल (जैसे पियोरुन), लेजर/माइक्रोवेव जैसे काउंटर-UAS अहम हैं। रेज़जॉव जैसे ट्रांजिट हब के चारों ओर 24x7 काउंटर-ड्रोन “डोम” बनाना पड़ता है—रडार, RF सेंसर, EO/IR कैमरे, सॉफ्ट-किल जामिंग और हार्ड-किल गन/मिसाइल—तभी सैचुरेशन अटैक धीमा पड़ता है।
इस हमले ने एरलाइंस और यात्रियों को भी झटका दिया। सिर्फ वारसॉ चोपिन से ही 500 से ज्यादा उड़ानें 10 सितंबर को तय थीं। दो घंटे का स्टॉपेज यूरोप की नेटवर्क्ड टाइमटेबल में डोमिनो इफेक्ट बनाता है—क्रू शेड्यूल गड़बड़ाते हैं, स्लॉट री-असाइन होते हैं, और कनेक्टिंग फ्लाइट्स छूटती हैं। एयरलाइंस ने यात्रियों से कहा कि वे ऐप/मैसेज चेक करते रहें, एयरपोर्ट थोड़ी जल्दी पहुंचें और संभव हो तो हैंड बैगेज के साथ फ्लेक्सिबल रहें, ताकि रीबुकिंग आसान हो।
मैदान में काम कर रही यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज के लिए दूसरा मोर्चा—मलबा उठाना—कम जोखिम भरा नहीं होता। ड्रोन के हिस्से फैलते हैं, कभी-कभी अनएक्सप्लोडेड चार्ज भी मिलते हैं। इसलिए सर्च टीमों ने कई साइट्स को कॉर्डन कर लोकल लोगों से दूरी बनाए रखने को कहा। किसी खेत, जंगल या गांव के पास संदिग्ध चीज दिखे तो सीधे पुलिस को सूचित करने की हिदायत दी गई।
रेज़जॉव का नाम बार-बार क्यों आ रहा है? यूक्रेन के लिए यूरोपीय सैन्य मदद—गोला-बारूद से लेकर वाहन और मानवीय सहायता—यहीं से होकर सीमापार जाती रही है। अगर रूस इस हब को तनावग्रस्त रखता है, तो सप्लाई चेन धीमी पड़ती है, बीमा प्रीमियम बढ़ते हैं, और ट्रांजिट का जोखिम-मैप बदलता है। यही “प्रेशर प्वाइंट” छेड़ना “सैलेमी स्ट्रैटेजी” का मकसद होता है—छोटे-छोटे धक्कों से बड़ा असर।
टेक्निकल नजर से देखें तो ड्रोन स्वॉर्म का जवाब भी स्वॉर्म जैसा ही होना चाहिए—सेंसर्स की संख्या बढ़ाइए, फ्यूजन बेहतर करिए, और किल-चेन को सेकंडों में घटाइए। एयर डिफेंस की यह नई गणित पर्सनल, टेक्नोलॉजी और फंडिंग—तीनों मांगती है। पोलैंड में SkyCTRL का अपग्रेड लटका रहना इसी गैप की मिसाल है। नीति-निर्माताओं के सामने अब साफ प्राथमिकता है—लो-एंड काउंटर-UAS में तुरंत निवेश, खासकर बॉर्डर बेल्ट और रणनीतिक नोड्स के ऊपर।
यूरोप के लिए यह घटना एक और वॉर्निंग है कि यूक्रेन युद्ध की स्पिलओवर लागत सिर्फ कूटनीति में नहीं, रोजमर्रा के जीवन—उड़ान, बीमा, लॉजिस्टिक्स—में भी दिखती है। रोमानिया में गिरे ड्रोन मलबे हों या बाल्टिक के पास बार-बार उठते एयर अलर्ट—संदेश वही है: सीमाएं अब सिर्फ नक्शे पर सीधी रेखाएं नहीं रहीं।
आगे क्या? नाटो की निगरानी उड़ानें बढ़ सकती हैं, एयर डिफेंस बैटरियां रोटेट हो सकती हैं, और फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस पर क्विक-रीएक्शन अलर्ट और सख्त होगा। पोलैंड घरेलू स्तर पर C-UAS नेटवर्क, एयरपोर्ट परिमिटर हार्डनिंग, और पब्लिक अलर्ट प्रोटोकॉल (सायरन/स्मार्टफोन अलर्ट) जैसे कदम तेज कर सकता है। एयरलाइंस के लिए कॉन्टिजेंसी-रूटिंग और क्रू बफर अब नयी नॉर्मल का हिस्सा होंगे।
इस ड्रोन वॉरफेयर का असली झटका तो आम आदमी को लग रहा है - उड़ानें रुकना, बीमा बढ़ना, लॉजिस्टिक्स टूटना। ये सब बस एक युद्ध के नतीजे नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत है। रूस ने अब बड़े हथियारों की जगह छोटे-छोटे ड्रोन से यूरोप के नसों को काटना शुरू कर दिया है। और हम अभी तक इसकी गहराई को समझ नहीं पा रहे।
जब एक ड्रोन 500 रुपये का हो और उसे रोकने के लिए 5 करोड़ की मिसाइल चलानी पड़े, तो ये असमान लागत का खेल है। रूस जीत रहा है - ना तो उसने जमीन जीती, ना हवाई क्षेत्र, बल्कि हमारी नींद और यात्रा का समय।
पोलैंड ने अच्छा किया कि उसने नाटो के साथ मिलकर इंटरसेप्ट किया। लेकिन अगला सवाल ये है - क्या हम भी इस तरह के सिस्टम बनाने के लिए तैयार हैं? या हम भी बस देखते रहेंगे कि कहीं एक ड्रोन हमारे एयरपोर्ट पर न गिर जाए?
मुझे लगता है ये सब बहुत डरावना है... लेकिन अगर एक छोटा सा ड्रोन हवाई अड्डे को बंद कर सकता है, तो हम इसे अभी तक किसी तरह रोक नहीं पा रहे। मैंने सुना है कि भारत में भी कुछ एयरपोर्ट्स पर ड्रोन जामिंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं। शायद हमें भी इस तरह के टेक्नोलॉजी पर जल्दी फोकस करना चाहिए।
यार ये ड्रोन स्वार्म वाली बात तो बिल्कुल फिल्म जैसी लगी... पर असलियत में ये रोज की बात बन गई है। कल तक ड्रोन तो फोटो खींचने के लिए थे, आज वो एयरपोर्ट बंद कर रहे हैं। ये टेक्नोलॉजी का जादू है या बुराई? मैं तो अब हर उड़ान से पहले देखूंगा कि कहीं आसमान में कोई छोटा सा बॉक्स तो नहीं उड़ रहा। 😅
हाँ भाई, ये ड्रोन वाला खेल तो बहुत बड़ा हो गया है! पर अगर हम इसके खिलाफ अपने देश में भी जल्दी से काउंटर-ड्रोन नेटवर्क बना लें, तो ये दुनिया का सबसे बड़ा लाभ होगा। इसके लिए सरकार को बस थोड़ा सा बजट देना है - बाकी तो भारतीय इंजीनियर्स अपने आप ही जादू कर देंगे। जय हिंद!
इस घटना का एक बड़ा पहलू ये है कि नाटो की रेडलाइन अब बहुत धुंधली हो गई है। बिना किसी मौत के ड्रोन हमले को आर्टिकल 5 के तहत नहीं माना जा सकता, लेकिन ये आक्रमण अभी भी एक युद्ध का हिस्सा है। इसका जवाब सिर्फ मिसाइलों से नहीं, बल्कि एक नए तरह के डिफेंस इकोसिस्टम से होना चाहिए।
मुझे लगता है कि अब हर देश को अपनी सीमा पर छोटे ड्रोन के लिए अलग से तैयारी करनी होगी। बड़े मिसाइल्स तो बहुत महंगे हैं। अगर हम लोग बेहतर सेंसर, जामिंग और छोटे जामर्स बना लें, तो ये खतरा कम हो सकता है। बस इतना ही चाहिए - थोड़ा ध्यान, थोड़ा बजट, और बहुत ज्यादा तैयारी।
ये ड्रोन स्वार्म जैसे हमले... वास्तव में युद्ध की परिभाषा बदल रहे हैं। अब जंग नहीं, बल्कि अस्थिरता ही हमला है। एक ड्रोन ने एक एयरपोर्ट रोक दिया - लेकिन एक देश के आत्मविश्वास को नहीं तोड़ सका। शायद यही असली जीत है।
इतना बड़ा विषय है और इतना छोटा लेख। मुझे लगता है ये ब्लॉग लिखने वाले ने बस एक दिन की खबर को जानबूझकर बड़ा बना दिया।