जब बात आर्थिक सुधार, देश के आर्थिक ढाँचे को बेहतर बनाने, उत्पादन बढ़ाने और जीवन स्तर सुधारने की नीति‑संचालन प्रक्रिया है. इसे कभी‑कभी आर्थिक परिवर्तन भी कहा जाता है, और यह निवेश माहौल को आकर्षित करने, उधारी नीति को सुदृढ़ करने और वित्तीय बाजार की स्थिरता बढ़ाने में मदद करता है।
आर्थिक सुधार आर्थिक सुधार का पहला लक्ष्य निवेश को लुभाना है। जब सरकार कर दरें घटाती है, टीजीए सहज बनाती है और बुनियादी ढाँचा तेज़ी से बनाती है, तब घरेलू और विदेशी कंपनियों का भरोसा बढ़ता है। यह भरोसा सीधे रोजगार सृजन और आय वृद्धि में बदलता है, जिससे मध्यम वर्ग का ख़रीद शक्ति भी मजबूत होती है। साथ ही, स्किल‑ड्रिवन रोजगार के लिए नई स्कीमें, जैसे स्टार्ट‑अप इन्क्यूबेटर, राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को व्यापक बनाते हैं।
दूसरा बड़ा स्तम्भ उधारी नीति में बदलाव है। RBI के रेपो दर में कटी हुई जगह, बैंकों को कम ब्याज पर ऋण देने की संभावना देती है, जिससे छोटे उद्यमी और एजीरी क्षेत्र को पूँजी मिलती है। साथ ही, पेटीएम, पेपरपे जैसे फिनटेक कंपनियों को डिजिटल लेंडिंग प्लेटफ़ॉर्म विकसित करने की अनुमति मिलती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी आसान क्रेडिट एक्सेस हो जाता है। यह उधारी में सुधार वित्तीय बाजार को तरल बनाता है, जिससे स्टॉक मार्केट में निवेश बढ़ता है और बांड मार्केट में जोखिम कम होता है।
तीसरा पहलू वित्तीय नियमन का सुदृढ़ीकरण है। SEBI द्वारा नवीन नियम, जैसे ग्रेस्केल निवेशकों के लिए सततता मानक, कंपनियों को पारदर्शिता में सुधार करने के लिए प्रेरित करते हैं। जब कंपनियों की रिपोर्टिंग बेहतर होती है, तो वैश्विक संस्थागत निवेशक भारतीय शेयरों में भरोसा बढ़ाते हैं। इससे बाजार की पूँजीकरण बढ़ती है और शेयर‑इंडेक्स में स्थिरता आती है, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
अंत में, रूपांतरण नीति और ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) के संरचनात्मक बदलावों पर नज़र डालते हैं। औद्योगिक उत्पादन से सेवाओं की ओर शिफ्ट, डिजिटल अर्थव्यवस्था का उदय, और हरित ऊर्जा में निवेश सभी आर्थिक सुधार के अभिन्न भाग हैं। ये परिवर्तन न केवल पर्यावरणीय लक्ष्य हासिल करते हैं, बल्कि नई नौकरियों का सृजन और निर्यात क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इस तरह आर्थिक सुधार सिर्फ नीति बदलाव नहीं, बल्कि सतत विकास की नींव रखता है। अगले सेक्शन में आप देखेंगे कि हमारी साइट ने इस विषय पर कौन‑कौन से लेख तैयार किए हैं, जो आपके सवालों का जवाब देंगे और वास्तविक कदम समझाएंगे।
डॉ. मनमोहन सिंह (1932‑2024) ने 1991‑96 के वित्त मंत्री के रूप में भारत को उदारवादी आर्थिक मोड़ दिया और 2004‑14 के प्रधानमंत्री के दौरान सामाजिक‑आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ किया। आरबीआई गवर्नर से लेकर राजसभा के दीर्घकालिक सदस्य तक उनका सफर सार्वजनिक सेवा का मॉडल बना। उनकी विरासत में एमजीएनआरए, आरटीआई और वित्तीय स्थिरता के कदम शामिल हैं।