भारतीय शेयर बाजार में 20 मिनट की तेज गिरावट: तीन मुख्य कारणों से बना ख़तरा

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भारतीय शेयर बाजार में 20 मिनट की तेज गिरावट: तीन मुख्य कारणों से बना ख़तरा

बाजार गिरावट के मुख्य कारण

आज दोपहर के बाद के सत्र में भारतीय शेयर बाजार ने 20 मिनट में 2‑3 % तक गिरावट देखी। यह सिर्फ एक मौसमी झटके जैसा नहीं था; यह लगातार पाँच दिनों से चल रहे मंदी का एक नया स्तर था। विश्लेषकों का मानना है कि इस गिरावट की जड़ तीन मुख्य कारकों में है।

  • FII की निरंतर बेचने की दबाव— पिछले तीन ट्रेडिंग दिनों में फ़ॉरेन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने मिलकर लगभग 8,800 crore रुपये की शेयर बेच दी। 24 सितंबर को 2,400 crore, 23 सितंबर को 3,500 crore और 21 सितंबर को 2,900 crore की निकासी ने मार्केट में बेचने का माहौल बना दिया, ख़ासकर दोपहर 2:30 बजे के बाद।
  • सिस्टम में अत्यधिक लेवरेज— कई दलाल और बड़ी संस्थाएँ उच्च लीवरेज पर पोज़िशन रखे थे। जब बाजार में छोटे‑छोटे सुधार हुए, तो ये लीवरेज तुरंत लिक्विडेशन का कारण बना, जिससे कीमतों में तेज़ गिरावट आई।
  • अमेरिकी आर्थिक ख़बरों का असर— यू.एस. में मौद्रिक नीति में बदलाव, संभावित मंदी और डॉलर की मजबूती ने वैश्विक जोखिम भावना को कड़ा कर दिया। भारतीय बाजार में भी विदेशी पूँजी के प्रवाह पर सीधा प्रभाव पड़ा।

इन तीन कारकों ने मिलकर एक "परफेक्ट स्टॉर्म" तैयार किया, जहाँ छोटे‑छोटे ट्रेडिंग सिग्नल भी बड़े गिरावटों में बदल गए।

भविष्य की संभावनाएँ और नीतिगत प्रतिक्रियाएँ

भविष्य की संभावनाएँ और नीतिगत प्रतिक्रियाएँ

2025 की शुरुआत से ही भारतीय शेयर बाजार ने कई चैंपेन देखी हैं। जनवरी में शुरू हुई कमजोरी ने फरवरी में सेंसेक्स को एक ही दिन में 1,000 प्वाइंट से अधिक नीचे गिरा दिया था। तब से लगातार महँगी महँगी खबरें, जैसे वैश्विक व्यापार तनाव, मुद्रास्फीति दर में गिरावट, और उच्च ब्याज दरें, ने बाजार को और दबाव में डाला।

सेक्टर‑वार देखें तो आईटी और वित्तीय सेवाएँ सबसे ज़्यादा मार खा रही हैं। इन दोसेक्टर्स में कई बड़े इंडियान स्टॉक ने 8‑10 % तक गिरावट दर्ज की। मार्च 2025 में हल्की उछाल देखी गई थी, पर वो भी अस्थिर रहा, क्योंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भरोसा अभी भी कम था।

सरकार और नियामक संस्थाएँ इस गिरावट को रोकने के लिए कई कदम उठा रहे हैं। RBI ने रुपये को स्थिर रखने हेतु इंटरवेंशन किया, जबकि SEBI ने अत्यधिक वोलैटिलिटी को कम करने के लिए ट्रेडिंग कर्फ्यू और मार्जिन नियमों को कड़ा किया। इसके अलावा, सरकार के आर्थिक सलाहकारों ने संभावित स्टिमुलस पैकेज की तैयारियों की सूचना दी है, जिसमें छोटे‑मध्यम उद्यमों (SMEs) को तरलता समर्थन और निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए टैक्स रिलीफ शामिल हो सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि अगले महीने में एक हल्का रिवर्सल संभव है, पर यह तभी होगा जब घरेलू आर्थिक डेटा में सुधार आए और वैश्विक जोखिमों में कमी आए। अगर यू.एस. की मौद्रिक नीति में ढील दी जाती है, तो विदेशी पूँजी फिर से भारत की ओर आकर्षित हो सकती है। वहीं, अगर तेल की कीमतें स्थिर रहती हैं और मुद्रास्फीति पर काबू पाने के संकेत मिलते हैं, तो निवेशकों का भरोसा धीरे‑धीरे वापस आ सकता है।

अंत में यह कहा जा सकता है कि बाजार अभी भी “भारी भारी” धूप में नहीं है। निवेशकों को पोर्टफोलियो को विविधीकरण, लीवरेज कम करने और जोखिम प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मौजूदा नीतिगत उपाय और संभावित आर्थिक सुधार के बीच, भारतीय शेयर बाजार को जल्द ही एक नई दिशा मिलने की उम्मीद है।

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