डॉ. मनमोहन सिंह: भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार और पूर्व प्रधानमंत्री

मनमोहन सिंह का नाम सुनते ही भारत के आर्थिक इतिहास में एक नाटकीय मोड़ याद आता है। 26 सितंबर 1932 को ग्वालियर में जन्मे यह प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, 2024 में अपने 92 वर्ष की आयु में इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनका प्रभाव समय के साथ और गहरा होता जा रहा है।

आर्थिक सुधारों की दिशा में प्रमुख कदम

1991 में भारत को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा। उस तिमहनी में, तब के प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में दो‑स्तरीय रुपये डिवाल्यूएशन, आयात शुल्क में कटौती, फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन का उदारीकरण, और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विकेंद्रीकरण शामिल थे। इन कदमों ने भारत के विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया और आर्थिक गति को नई दिशा दी।

  • 1991 की मुद्रा गिरावट: पहली चरण में 18% और दूसरी में 11% की गिरावट, जिससे निर्यात में वृद्धि हुई।
  • नवीन उद्योग नीति (1991): लाइसेंस राज को खतम कर, निजी निवेश को प्रोत्साहित किया।
  • बैंकिंग रेफ़ॉर्म: एटीएम, क्रेडिट कार्ड, और डेबिट कार्ड जैसी नई तकनीकों को अपनाया गया।
  • ट्रेडिंग पर लाइसेंस हटाना: विदेशी व्यापार में बाधाओं को कम कर, वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी।

इन सुधारों से भारत ने 1990‑2000 के दशक में 6‑7% की औसत जीडीपी वृद्धि दर हासिल की, जो पहले के दशक की 2‑3% से कई गुना अधिक थी। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने उन्हें "इंडिया के आर्थिक बदलाव के आर्किटेक्ट" नाम दिया, और कई प्रमुख आर्थिक फोरम में उनका स्वागत हुआ।

प्रधानमंत्री के रूप में प्रमुख पहल

2004 से 2014 तक दो कार्यकाल तक प्रधान मंत्री के पद पर रहकर डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक स्थिरता के साथ सामाजिक समावेशन पर भी जोर दिया। उनके राज्यकाल में कई ऐतिहासिक कानून पारित हुए:

  1. राइट टू इन्फ़ॉर्मेशन एक्ट (2005): शासन में पारदर्शिता लाने का प्रमुख कदम।
  2. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (2005), बाद में एमजीएनआरए (2009): ग्रामीण रोजगार की सुरक्षा के लिए विश्व की सबसे बड़ी योजना।
  3. ऑडिट और एंटी‑कोरप्शन फ्रेमवर्क: राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाओं को सशक्त किया।
  4. विदेशी निवेश को आसान बनाने के लिए कई नियमों में बदलाव: विशेष आर्थिक क्षेत्रों और FDI में बढ़ोतरी।

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट में भी भारत ने भौतिक नुकसान को न्यूनतम रखा। उनके सरकार ने नियामक कदम उठाकर बैंकिंग प्रणाली को सुरक्षित किया और मौद्रिक नीति में अभ्यस्त परिवर्तन किए। इससे भारत की अर्थव्यवस्था ने विश्व की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर प्रदर्शन किया।

राजनीतिक स्तर पर उनका व्यवहार हमेशा विचारशील और शांतिपूर्ण रहा। राजसभा में उन्होंने 30 वर्षों तक असम का प्रतिनिधित्व किया, और विपक्षी दलों के साथ भी सम्मानजनक संवाद बनाए रखा। 1999 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण दिल्ली से हार का सामना करने के बावजूद, उन्होंने अपराजित राजनैतिक भूमिका निभाई।

उनकी मौद्रिक नीति, सार्वजनिक खर्च, और आर्थिक दृष्टिकोण ने कई विश्वविद्यालयों में अध्ययन का विषय बन गया। कांग्रेस पार्टी ने उनकी स्मृति में "डॉ. मनमोहन सिंह रिसर्च सेंटर एंड लाइब्रेरी" की स्थापना की, जिससे उनका बौद्धिक वारिसा आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके।

2025 में उनके 93वें जन्म पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विभिन्न दलों के नेता उन्हें "एक सच्चे विचारक और राष्ट्र निर्माण के सच्चे सेवक" के रूप में याद कर चुके हैं। उनकी दूरदर्शी नीतियों ने भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया।

डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत न केवल आर्थिक आंकड़ों में परिलक्षित होती है, बल्कि सामाजिक न्याय और पारदर्शिता के मूल्यों में भी। उनका जीवन और कार्य यह सिद्ध करता है कि सटीक आर्थिक सोच और नैतिक राजनैतिक व्यवहार का संयोजन ही राष्ट्र को सच्ची प्रगति की ओर ले जाता है।

टिप्पणि (6)

  1. Roy Roper
    Roy Roper

    1991 के सुधार अच्छे थे पर अब तो वो सब बस यादें बन गए हैं
    आज कल तो जो भी कुछ हो रहा है वो बस नारे का खेल है

  2. Sandesh Gawade
    Sandesh Gawade

    मनमोहन सिंह के बिना आज का भारत नहीं होता भाई
    लेकिन अब तो नेता बनने के लिए बोलने की ताकत चाहिए ना बुद्धि की नहीं
    वो शांत रहे तो उनकी आवाज़ दब गई
    आज के दिनों में जो ज़ोर से चिल्लाता है वही बाप बन जाता है
    हमें इतिहास को याद रखना होगा क्योंकि भविष्य उसी से बनता है
    सच्चा नेता वो होता है जो सोचता है न कि चिल्लाता है
    मनमोहन सिंह ने देश को बदला था न कि नारे लगाए
    अब तो लोग ट्वीट से नेता बनने की कोशिश करते हैं
    क्या हम भूल गए कि एक आर्थिक क्रांति के लिए बुद्धि चाहिए न कि बोलने की ताकत?
    उनकी आँखों में देश की चिंता थी न कि ट्रेंड की
    हमें ऐसे नेता चाहिए जो सोचें न कि शो करें

  3. MANOJ PAWAR
    MANOJ PAWAR

    मैंने 1991 में अपने पिताजी के साथ बाजार गए थे जब रुपया गिरा
    उस दिन दुकानदार ने एक बोतल तेल की कीमत 5 रुपये बढ़ा दी
    हम सब घबरा गए थे
    लेकिन आज जब मैं अपने बेटे को ये कहानी सुनाता हूँ तो वो हँसता है
    उसे लगता है ये एक फिल्म की कहानी है
    मैं उसे बताता हूँ कि ये सच था
    और इसी सच ने हमारी किस्मत बदल दी
    मनमोहन सिंह ने जो किया वो कोई नाटक नहीं था
    वो एक आँखों से देखकर बनाया गया भविष्य था
    हम आज जो भी खाते हैं वो उनकी चिंतन के बिना नहीं
    क्या हम उनकी शांति को बुद्धिमत्ता समझ पाए?
    या हम बस चिल्लाहट को ही नेतृत्व समझने लगे हैं?
    मैं उनकी याद में रोता हूँ
    क्योंकि आज का देश उनके जैसा नेता चाहता है न कि बोलने वाला

  4. Pooja Tyagi
    Pooja Tyagi

    मनमोहन सिंह के बारे में बात करने के लिए बहुत बातें हैं!!
    लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि उन्होंने कभी भी अपनी आत्मा को बेचा नहीं!!
    जब दूसरे लोग नारे लगा रहे थे, वो आंकड़े देख रहे थे!!
    जब दूसरे लोग ट्वीट कर रहे थे, वो बैंकिंग रिफॉर्म कर रहे थे!!
    जब दूसरे लोग राजनीति के लिए बोल रहे थे, वो देश के लिए सोच रहे थे!!
    उनकी शांति को दुर्बलता मत समझो!!
    वो शांति थी जिसने देश को बचाया!!
    उनकी बातों में ज़रूरत नहीं थी कि वो चिल्लाएं!!
    उनकी आवाज़ तो आंकड़ों में थी!!
    आज जो लोग उनकी तुलना कर रहे हैं, वो खुद को देख लें!!
    क्या आपने कभी एक बार भी बैंकिंग रिफॉर्म का नाम सुना है?
    क्या आपने कभी राइट टू इन्फॉर्मेशन के बारे में लिखा है?
    या फिर बस ट्रेंड में आ गए हैं?
    मनमोहन सिंह ने देश को नहीं, आंकड़ों को बदला!!
    और आज का देश उनके बिना बस एक शो है!!

  5. Kulraj Pooni
    Kulraj Pooni

    क्या हम भूल गए कि ये सब आर्थिक सुधार असल में एक बहुत बड़ी गलती का नतीजा थे?
    क्या हमने कभी सोचा कि 1991 का संकट असल में भारत के लोगों की बुद्धि का नहीं, बल्कि उनकी लापरवाही का नतीजा था?
    क्या हम ये नहीं देख पा रहे कि जो आज नेता बन रहे हैं, वो भी उसी बुद्धि के बच्चे हैं?
    क्या हम समझ नहीं पा रहे कि जो आर्थिक विकास हुआ, वो एक तात्कालिक जादू था, न कि स्थायी बदलाव?
    मनमोहन सिंह एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे, यह तो सही है, लेकिन क्या उनके सुधारों ने गरीबी को खत्म किया?
    क्या उनके नियमों ने एक ग्रामीण महिला की जिंदगी बदली?
    या फिर वो सब बस एक बड़े शहर के बैंकों और कंपनियों के लिए थे?
    मैं उनके व्यक्तित्व को सम्मान करता हूँ, लेकिन क्या हम उनकी नीतियों को भी सम्मान कर सकते हैं?
    क्या हम अपने आप को ये नहीं पूछ रहे कि जिस देश को वो बनाना चाहते थे, क्या वो आज वैसा है?
    हम उनके आंकड़ों को देख रहे हैं, लेकिन उनके आंकड़ों के पीछे के लोगों को देख रहे हैं?
    मनमोहन सिंह एक बहुत बड़े व्यक्ति थे, लेकिन क्या उनकी बड़ी बात ये नहीं है कि वो एक बार भी नहीं बोले कि ये सुधार गरीबों के लिए हैं?
    उन्होंने देश को बदला, लेकिन क्या उन्होंने भारत के दिल को बदला?

  6. Hemant Saini
    Hemant Saini

    मैं तो सोचता हूँ कि मनमोहन सिंह जी जैसे नेता कभी वापस नहीं आएंगे
    उनके ज़माने में बातचीत होती थी, बहस होती थी, लेकिन वो बहस दिमाग से होती थी, दिल से नहीं
    आज बहस तो ट्विटर पर होती है, और वो भी गुस्से से
    मैंने एक बार उनकी राजसभा की बैठक देखी थी, जब किसी ने उन्हें आलोचित किया था
    उन्होंने बिना एक शब्द बोले, बस एक शांत मुस्कान दी
    और फिर जब उन्होंने जवाब दिया, तो वो इतना सटीक था कि उसके बाद कोई बोल नहीं पाया
    ये नेतृत्व है, न कि चिल्लाहट
    आज के दिनों में जो लोग उनकी तुलना करते हैं, वो अपने आप को देखें
    क्या आप एक ऐसी बात बोल सकते हैं जिसे सुनकर कोई चुप हो जाए?
    क्या आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसकी बात पर देश की आर्थिक नीति बदल जाए?
    मनमोहन सिंह ने नहीं बोला कि मैं बहुत अच्छा हूँ
    उन्होंने बस काम किया
    और आज भी जब मैं अपने बेटे को ये कहानी सुनाता हूँ, तो वो कहता है
    ‘पापा, ऐसे लोग आज कल कहाँ हैं?’
    मैं उत्तर नहीं दे पाता
    क्योंकि मैं भी उन्हीं की तलाश में हूँ

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