आपने शायद सूनामे या फिल्म में इस नाम को सुना होगा, लेकिन असल में इसका मतलब क्या है? स्किज़ोफ़्रेनिया एक मानसिक बीमारी है जो सोच, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करती है। आमतौर पर 15‑35 साल की उम्र में शुरू होती है, लेकिन कभी‑कभी इससे पहले या बाद में भी दिख सकती है।
1. हैलुसिनेशन: चीज़ें सुनना या देखना जो असल में नहीं होती, जैसे आवाज़ें या प्रकाश के रूप में दिखावट।
2. डिल्यूजन: बेवकूफ़ी वाले विश्वास रखना, जैसे कोई आपका पीछा कर रहा हो।
3. सोचने‑समझने में कठिनाई: बातों को जोड़ना मुश्किल, छोटी-छोटी चीज़ें भी उलझन बन जाती हैं।
4. भावनात्मक बदलाव: अचानक खुशी या उदासी दिखाना, कभी‑कभी भावनाओं का अभाव रह जाता है।
5. सामाजिक अलगाव: दोस्त और परिवार से दूरी बनाना, घर में बंद हो जाना।
सही कारण अभी पूरी तरह नहीं पता, लेकिन कुछ बातें मदद करती हैं:
इनमें से कोई एक अकेला नहीं, बल्कि मिलजुल कर असर डालता है। इसलिए इलाज सिर्फ दवा नहीं, पूरी लाइफ़स्टाइल बदलना जरूरी है।
सबसे पहले डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलें। आम तौर पर तीन चीज़ों का मिश्रण काम करता है:
इसे साथ में नियमित व्यायाम, सही खानपान और पर्याप्त नींद भी जरूरी हैं। कॉफ़ी या शराब जैसे उत्तेजक पदार्थों से बचें; ये लक्षण बढ़ा सकते हैं।
अगर किसी को स्किज़ोफ़्रेनिया के लक्षण दिखते हों तो जल्दी डॉक्टर को दिखाएँ। अक्सर लोग शर्म या डर की वजह से देर कर देते हैं, जिससे बीमारी आगे बढ़ सकती है।
समझदारी और सही इलाज से स्किज़ोफ़्रेनिया वाले लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं। याद रखें, बीमारी आपका भाग्य नहीं, सिर्फ एक चुनौती है जिसे मिलकर पार किया जा सकता है।
शोध में सामने आया है कि स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों का दिमाग उम्र से 3-8 साल अधिक बूढ़ा दिखता है। यह अंतर MRI व बायोमार्कर जाँच में पाया गया। इससे न सिर्फ उम्र घटती है बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है। खराब लाइफस्टाइल और दूसरी बीमारियाँ भी दिमागी उम्र बढ़ाने में भूमिका निभाती हैं।