स्किजोफ्रेनिया कारण तेज़ी से बढ़ती है दिमागी उम्र, शोध में चौंकाने वाले खुलासे

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स्किजोफ्रेनिया कारण तेज़ी से बढ़ती है दिमागी उम्र, शोध में चौंकाने वाले खुलासे

स्किजोफ्रेनिया और बढ़ती दिमागी उम्र : क्या है सच्चाई?

कई बार हम सोचते हैं कि उम्र सिर्फ कैलेंडर में दर्ज होती है, पर वैज्ञानिकों ने यह स्थापित कर दिया है कि स्किजोफ्रेनिया जैसी दिमागी बीमारियां व्यक्ति के दिमाग की जैविक उम्र को तेजी से बढ़ा देती हैं। MRI स्कैन और बॉयोमार्कर एनालिसिस से स्पष्ट हुआ है कि स्किजोफ्रेनिया के मरीज़ों का दिमाग असल उम्र से औसतन 3.36 साल पहले ही बूढ़ा दिखने लगता है। लंबे समय में यह अंतर 8 साल या उससे भी ज्यादा तक चला जाता है।

सबसे पहले, ब्रेन MRI आधारित तकनीक से देखा गया कि स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों में मस्तिष्क की संरचना में वैसी ही कमजोरी दिखती है जैसी उम्रदराज़ लोगों में दिखती है। खासकर, दिमाग के सामने और सिरे वाले हिस्सों (frontal, temporal regions) की कॉर्टिकल थिकनेस (मोटाई) में काफी कमी पाई जाती है। इसके अलावा, एक बायोमार्कर जिसे न्यूरोफिलामेंट लाइट चैन (NfL) कहा जाता है, उसका स्तर भी इन मरीज़ों में आम लोगों से कहीं अधिक पाया गया है, जो तेज़ दिमागी बूढ़ापे से सीधा जुड़ा है।

  • ब्रेन एज गैप (यानी असल और जैविक उम्र का अंतर) स्किजोफ्रेनिया वाले मरीज़ों में शुरुआत में 3.36 साल रहता है।
  • कुछ केसों में यह अंतर 8 साल या उससे भी अधिक हो जाता है।
  • MRI स्कैन में उम्रदराज़ी जैसी दिमागी संरचनात्मक कमी स्पष्ट दिखाई देती है।
  • NfL जैसे बायोमार्कर मरीज़ों में तेजी से बढ़ते एजिंग को दर्शाते हैं।
तेज़ दिमागी उम्र बढ़ने के पीछे छुपे कारक

तेज़ दिमागी उम्र बढ़ने के पीछे छुपे कारक

मस्तिष्क की उम्र इतने जल्दी क्यों बढ़ती है? इसका जवाब सीधे तौर पर दिमाग में आने वाले संरचनात्मक और जैविक बदलावों से जुड़ा है। MRI स्टडीज़ बताती हैं कि स्किजोफ्रेनिया में सिर्फ पूरा दिमाग नहीं, बल्कि उसके कुछ हिस्से, जैसे frontal और temporal हिस्से अलग तेज़ी से बूढ़े होते हैं। दिमागी उम्र बढ़ने का असर सोचने-समझने, याददाश्त और फैसले लेने की क्षमता पर भी पड़ता है।

पर मामला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। ब्रेन एजिंग के साथ मरीज़ों की औसत उम्र भी 20 से 30 साल तक कम हो जाती है, यानी वे जीवन का बड़ा हिस्सा गंवा देते हैं। साथ में हृदय रोग, कैंसर और दूसरी उम्रदराज़ी बीमारियों का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। दिलचस्प बात ये है कि करीब आधे मरीज़ों को कोई न कोई और गंभीर शारीरिक बीमारी भी साथ में होती है—जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर या मोटापा, जिससे इलाज और भी मुश्किल हो जाता है।

स्टडीज ने ये भी साफ किया है कि जीवनशैली की खराब आदतें—जैसे स्मोकिंग, शराब या नशा, और शारीरिक निष्क्रियता—दिमाग के बूढ़े होने के इस प्रोसेस को और तेज़ करती हैं। यानी, इनके साथ इलाज में सिर्फ मानसिक नहीं, शारीरिक स्वास्थ्य की देखभाल भी ज़रूरी है। सही खानपान, व्यायाम और अच्छा लाइफस्टाइल अपनाना इलाज का अहम हिस्सा बन गया है।

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