आपने शायद खबरों या डॉक्टर की सलाह में "एमआरआई" शब्द सुना होगा, पर असल में यह कैसे काम करता है, अक्सर समझ नहीं आता। चलिए सरल भाषा में इसे तोड़‑फोड़ कर बताते हैं। एमआरआई यानी मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग एक ऐसा स्कैन है जो शरीर के अंदरूनी हिस्सों की बहुत साफ़ तस्वीरें बनाता है—बिना कोई रेडिएशन इस्तेमाल किए।
इसे समझने के लिए सोचा जाए कि आपका शरीर एक बड़ी लाइब्रेरी है और एमआरआई एक सुपर‑स्मार्ट कैमरा। यह बड़े मैग्नेटिक फील्ड का उपयोग करके पानी और वसा में मौजूद प्रोटॉन्स को हिलाता है, फिर उनके रिस्पॉन्स से कंप्यूटर इमेज बनाता है। इस प्रक्रिया में कोई एक्स‑रे नहीं, इसलिए रेडिएशन की चिंता कम रहती है।
डॉक्टर अक्सर तब एमआरआई की सलाह देते हैं जब आपको दिमाग़, रीढ़, जॉइंट्स या अंगों में किसी तरह का सूजन, ट्यूमर या चोट का संदेह हो। अगर आप सिर दर्द, पैरालिसिस या लगातार पीठ‑दर्द से परेशान हैं, तो एमआरआई मदद कर सकता है सही कारण जानने में। आमतौर पर यह सीटी स्कैन की जगह ली जाती है जब अधिक डिटेल चाहिए और रेडिएशन कम रखना ज़रूरी हो।
एमआरआई करवाने के पहले कुछ आसान तैयारी करनी पड़ती है:
एक बार जब सब तैयार हो जाए, तो तकनीशियन आपको छोटे‑छोटे ईयरप्लग देंगे ताकि आवाज़ से दिमाग़ में शोर न हो। पूरी प्रक्रिया आमतौर पर 30‑45 मिनट लेती है, लेकिन कुछ खास केस में दो घंटे तक भी जा सकती है।
सुरक्षा के मामले में एमआरआई काफी भरोसेमंद है, क्योंकि इसमें आयनाइज़िंग रेज़ीजन नहीं होते। फिर भी अगर आप गर्भवती हैं या छोटे बच्चे को स्कैन करवा रहे हैं तो डॉक्टर से बात करना जरूरी है—कभी‑कभी वैकल्पिक टेस्ट बेहतर हो सकते हैं।
एमआरआई की कुछ मुख्य ख़ासियात:
अंत में याद रखें कि एमआरआई एक डायग्नोस्टिक टूल है, इलाज नहीं। इसका सही उपयोग डॉक्टर की सलाह पर ही होना चाहिए। अगर आपका डॉक्टर एमआरआई सुझाए, तो ऊपर बताई गई तैयारी को ध्यान से करें और प्रक्रिया के दौरान आरामदायक रहें—तब आप साफ़ परिणाम पा सकते हैं और अपनी बीमारी का सटीक पता लगा सकते हैं।
शोध में सामने आया है कि स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों का दिमाग उम्र से 3-8 साल अधिक बूढ़ा दिखता है। यह अंतर MRI व बायोमार्कर जाँच में पाया गया। इससे न सिर्फ उम्र घटती है बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है। खराब लाइफस्टाइल और दूसरी बीमारियाँ भी दिमागी उम्र बढ़ाने में भूमिका निभाती हैं।