स्वामी विवेकानंद – जीवन, सोच और प्रेरणा

अगर आप कभी आत्म‑विश्वास या देशभक्ति की बात करते हैं तो स्वामी विवेकानंद का नाम ज़रूर आता है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था, लेकिन बचपन से ही वो सीखते‑समझते रहे थे कि मनुष्य अपने भीतर क्या रखता है।

बचपन से युवावस्था तक

विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उन्होंने पहले संस्कृत, अंग्रेज़ी और फ़ारसी जैसी भाषाें पढ़ीं और छोटे‑छोटे प्रश्नों को समझने की आदत बना ली थी। 1881 में वे रामकृष्ण मिशन से जुड़े और गहरी आध्यात्मिक खोज शुरू की। तब उनका गुरु स्वामी रामकृष्ण थे, जिनसे उन्होंने ‘सर्वत्र एक ही सत्य’ का ज्ञान लिया। इस विचार ने उनके आगे के काम को दिशा दी।

वो 1886 में भारत छोड़कर इंग्लैंड गए और वहाँ से कानून पढ़ने की कोशिश की, पर उनका दिल आध्यात्मिक शिक्षा में ही रहा। 1893 में उन्होंने शिकागो विश्व धर्म संसद में ‘सत्यमेव जयते’ का प्रसिद्ध भाषण दिया। इस बात को सुन कर कई लोग उनकी ओर आकर्षित हुए और भारत के युवाओं ने भी उन्हें अपना आदर्श मानना शुरू किया।

विवेकानंद के प्रमुख विचार

उनकी सोच बहुत सरल लेकिन गहरी थी – ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न मिल जाए’। वह कहते थे कि आत्म‑विश्वास ही सफलता की कुंजी है। उनका मानना था कि भारत को अपने अतीत के गौरव को फिर से जगाना चाहिए और विश्व में अपना स्थान बनाना चाहिए।

विवेकानंद ने शिक्षा को भी बहुत महत्व दिया। उन्होंने कहा, “शिक्षा का असली मकसद मनुष्य को पूर्णता तक ले जाना है, न कि केवल नौकरी पाने के लिए ज्ञान देना।” इसलिए वे स्कूलों और कॉलेजों में राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देने की बात करते रहे।

उनके कुछ लोकप्रिय उद्धरण हैं:

  • "असफल नहीं होते हम; हमें बस अभी तक समझ नहीं आया कि कौन सा रास्ता सही है।"
  • "खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर एक राह में खुदा के निशान हों।"
  • "समय ही सबसे बड़ा शिक्षक है, पर केवल वही जो सुनता है।"

इन बातों से हमें सीख मिलती है कि मुश्किलें अस्थायी हैं और मन की शक्ति से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। आज के युवाओं को इन विचारों को अपनाकर अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद का काम सिर्फ धर्म या अध्यात्म तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधार, शिक्षा, और राष्ट्रीय एकता पर भी जोर दिया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि अगर हम अपनी सोच को सकारात्मक रखेँ तो दुनिया में कोई भी बाधा बड़ी नहीं लगती।

आप अगर अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में प्रेरणा चाहते हैं, तो विवेकानंद के लेख और भाषण पढ़ना शुरू करें। उनके शब्दों में वही ऊर्जा है जो आपको कठिनाइयों से लड़ने का साहस देगी। बस एक बात याद रखें – "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न मिल जाए".

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