रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता का प्रस्ताव
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में चीन, भारत और ब्राज़ील को रूस-यूक्रेन संघर्ष में संभावित शांति वार्ताओं के मध्यस्थ के रूप में प्रस्तावित किया है। यह महत्वपूर्ण घोषणा व्लादिवोस्तोक में आयोजित ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के प्लेनरी सत्र के दौरान की गई। पुतिन ने जोर देकर कहा कि ये देश संघर्ष को सुलझाने की कोशिश में संजीवता से लगे हुए हैं और इस मुद्दे पर निरंतर संवाद बनाए हुए हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि युद्ध के प्रारंभिक हफ्तों में रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों के बीच एक प्रारंभिक सहमति बनाई गई थी, जो अब तक लागू नहीं हो सकी। यह सहमति भविष्य की वार्ताओं के लिए आधार बन सकती है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक यूक्रेन यात्रा
पुतिन की यह घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन की ऐतिहासिक यात्रा के बाद आई। मोदी ने इस यात्रा के दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमीर ज़ेलेंस्की से मुलाकात की और क्षेत्र में शांति बहाल करने में भारत की सक्रिय भूमिका निभाने की तत्परता व्यक्त की। मोदी ने ज़ेलेंस्की को बताया कि दोनों देशों को बिना देरी के वार्ता में शामिल होना चाहिए ताकि जारी युद्ध को समाप्त किया जा सके।
रूस और भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध
रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने पुतिन और मोदी के बीच के सकारात्मक और मैत्रीपूर्ण संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सुझाव दिया कि मोदी की पुतिन और ज़ेलेंस्की दोनों के साथ स्वतंत्र रूप से संवाद करने की क्षमता, साथ ही साथ अमेरिकी अधिकारियों के साथ भी संवाद करने की क्षमता, भारत को यूक्रेन पर संवाद स्थापित करने में मदद कर सकती है। हालांकि, पेसकोव ने नोट किया कि वर्तमान में मोदी के वार्ता का मध्यस्थ बनने के कोई विशेष योजनाएं नहीं हैं, क्योंकि इस प्रकार की वार्ताओं के लिए अब तक अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं हैं।
यूक्रेन की स्वतंत्रता के बाद पहली भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा
नवंबर 2021 में हुए इस यात्रा के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह यात्रा यूक्रेन की स्वतंत्रता के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा थी, और इसे पुतिन के साथ हुए शिखर संवाद के छह हफ्ते बाद किया गया, जिसने पश्चिमी देशों के बीच चिंताओं को जन्म दिया था। भारत ने यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष में शांति प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका को स्पष्ट रूप से प्रकट किया है। यह स्थिति भारतीय विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो इस प्रकार के वैश्विक मुद्दों पर भारत की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को उजागर करती है।
संभावित शांति वार्ता और भविष्य की रणनीति
पुतिन ने जोर देकर कहा कि चीन, भारत और ब्राज़ील जैसे देश, जो वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, उनकी मध्यस्थता का प्रस्ताव संघर्ष के समाधान में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इन देशों की संभावित भूमिका केवल मध्यस्थता तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि वे संघर्ष के बाद की पुनर्निर्माण प्रक्रिया में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच विवाद और गतिरोध का समाधान सरल नहीं है, लेकिन चीन, भारत और ब्राज़ील जैसी बड़ी शक्तियों की सहभागिता से इस घातक संघर्ष को एक सकारात्मक दिशा में मोड़ा जा सकता है।
यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की विदेश नीतियों को भी प्रभावित किया है। इसलिए महत्वपूर्ण है कि इन मध्यस्थ देशों की अपनी भूमिका और रणनीति को निर्विघ्न और स्वतंत्र रूप से संचालित करने दिया जाए। ये देश न केवल शांति वार्ता में योगदान दे सकते हैं बल्कि क्षेत्रीय स्थायित्व और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
शांति प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता
यह कदम यह भी दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न देश मिलकर इस संघर्ष का समाधान ढूंढ़ना चाहते हैं। चीन, भारत और ब्राज़ील नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं और इनकी मध्यस्थता से संघर्ष में एक सकारात्मक मोड़ आ सकता है। पुतिन का यह प्रस्ताव इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है।
इस तरह की मध्यस्थता और शांति प्रक्रिया में शामिल होना न केवल संबंधित देशों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उनकी बढ़ती भूमिका का संकेत भी है। यह प्रस्ताव एक महत्वपूर्ण कदम है जिसमें विश्व के विभिन्न देश मिलकर संघर्ष समाधान की दिशा में एक नई दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
ये बात सच में अच्छी है कि भारत को मध्यस्थ के रूप में देखा जा रहा है। हमने हमेशा न्याय और शांति के लिए खड़े होने की कोशिश की है। अब दुनिया भी इसे महसूस कर रही है।
हमारी विदेश नीति बदल रही है, और ये बहुत अच्छा है।
मोदी जी की यूक्रेन यात्रा इतिहास बन गई। कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री इतनी बड़ी बात नहीं कर पाया।
रूस और यूक्रेन दोनों के साथ बात करने की क्षमता हमारे पास है, और ये ताकत है।
हम न तो पश्चिम के हैं न ही रूस के। हम शांति के हैं।
अच्छा हुआ कि चीन और ब्राजील भी शामिल हैं। अमेरिका और यूरोप के बीच नहीं, बल्कि दक्षिण की ताकतों के साथ बात हो रही है।
ये नया युग है। हम अब दुनिया के बीच में खड़े हैं।
हम तो अभी भी अपने घर के बाहर जाकर दूसरों के लिए शांति बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अपने देश में गरीबों को खाना नहीं मिल रहा, लेकिन यूक्रेन में शांति के लिए भाग रहे हैं।
क्या ये वाकई सफलता है या बस एक फोटो ऑपरेशन?
मुझे लगता है कि ये सिर्फ एक राजनीतिक चाल है... लेकिन अगर ये शांति ला सकता है तो क्यों नहीं?
हम लोग बहुत जल्दी निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि ये सिर्फ नाटक है।
शायद ये एक छोटा सा अवसर है... और अगर हम इसे खो दें तो फिर कभी नहीं मिलेगा।
मैं आशा करती हूँ कि भारत इसे संभाल सके।
बस... इतना ही।
अरे भाई! ये तो भारत का ब्रांडिंग वाला बड़ा ट्रेडमार्क हो गया है।
रूस के साथ तेल, अमेरिका के साथ ड्रोन, यूक्रेन के साथ शांति का नारा।
हम एक ऐसा देश हैं जहाँ आप एक ही दिन में तीन अलग-अलग दुनियाओं में रह सकते हैं।
मोदी जी का ये नाटक बहुत शानदार है।
मैं तो इसे बॉलीवुड में बनवाऊंगा - टाइटल: 'मध्यस्थ: एक भारतीय की शांति यात्रा'।
कास्ट: राजकुमार राव के जगह मोदी जी।
म्यूजिक: एक शांत राग और एक रूसी बासुन।
एंडिंग: एक बच्चा रूस और यूक्रेन के बीच फूल बिखेरता है।
स्टार रेटिंग: 5/5 - बस ध्यान रखो, रात में न देखो।
यहाँ एक बात जो लगभग सभी लोग भूल जाते हैं - रूस और यूक्रेन के बीच का ये संघर्ष केवल दो देशों का नहीं है, ये एक वैश्विक तनाव है जिसमें ऊर्जा, खाद्य, वित्त और राजनीति सब कुछ शामिल है।
जब भारत जैसा देश मध्यस्थ बनता है, तो वो बस एक न्याय का प्रतिनिधि नहीं होता, बल्कि एक ऐसा देश होता है जिसके पास दोनों तरफ से विश्वास है।
हमने रूस के साथ सैन्य सामग्री खरीदी है, लेकिन यूक्रेन को इंसानी सहायता भी दी है।
हमने यूएन में अपना मत नहीं डाला, लेकिन राष्ट्रपति की यात्रा से संदेश दे दिया।
ये बहुत ही सूक्ष्म और जटिल रणनीति है, जिसे समझने के लिए बस एक दृष्टिकोण नहीं चाहिए।
हम एक ऐसे देश हैं जो दुनिया के सामने अपनी नीति को बदलने के बजाय उसे विकसित कर रहे हैं।
ये बदलाव अचानक नहीं आया, ये बहुत सालों के विदेश नीति के अनुभव से आया है।
हमने कभी अमेरिका के साथ भी अपनी आजादी नहीं छोड़ी, और रूस के साथ भी।
अब ये तीन देश - चीन, भारत, ब्राजील - एक नए वैश्विक संतुलन की ओर बढ़ रहे हैं।
इस बार वो अमेरिका या यूरोप के लिए नहीं, बल्कि अपने अपने तरीके से शांति की ओर बढ़ रहे हैं।
और अगर ये काम कर गया, तो ये दुनिया के लिए एक नया मॉडल बन जाएगा।
मध्यस्थ? बस एक बड़ा बकवास है।
रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, और अब भारत को शांति का नायक बनाने की कोशिश हो रही है।
हम तो रूस से तेल खरीद रहे हैं, और यूक्रेन को बस एक ट्वीट भेज रहे हैं।
ये शांति नहीं, ये सिर्फ एक ब्रांडिंग गेम है।
मैं तो सोचती हूँ कि अगर हम इस बात को समझ लें कि शांति के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है तो हम बहुत आगे बढ़ जाएंगे
हम अपने घर में झगड़े तो करते हैं लेकिन दुनिया को शांति देने का अवसर हमें मिला है
ये तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी है
हमें इसे नहीं छोड़ना चाहिए
हम एक ऐसे देश हैं जो लड़ते नहीं बल्कि बात करते हैं
ये हमारी ताकत है
हम इसे खोना नहीं चाहते
ये सब बकवास है।
पुतिन ने बस एक शॉर्टकट ढूंढ़ा है।
भारत को फंसाने के लिए।
हम अपने आप को बड़ा समझते हैं, लेकिन दुनिया हमें एक धोखेबाज देश के रूप में देखती है।
यूक्रेन के लोग अपने घर जल रहे हैं, और हम यहाँ मध्यस्थ बनने का नाटक कर रहे हैं।
ये नहीं होगा।
कोई भी शांति नहीं आएगी जब तक रूस अपने अधिकार के लिए लड़ रहा है।
हमारी भूमिका बस एक धोखा है।