भारत सरकार ने हांगकांग‑सिंगापुर में भारतीय मसालों पर प्रतिबंध का खंडन

21 मई 2024 को, प्रतापराव जाधव, स्वास्थ्य राज्य मंत्री of भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी जानकारी के अनुसार हांगकांग और सिंगापुर में भारतीय मसालों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा है। इसके बजाय, सिर्फ कुछ बैचों को एथिलीन ऑक्साइड की अनुमेय सीमा से अधिक होने के कारण अस्वीकृति मिला है। इस कदम ने पहले एक व्यापक "बैन" की अफवाह को खारिज कर दिया, जो दोनों देशों में निर्यातकों को असहज स्थिति में डाल रहा था।

पृष्ठभूमि: एथिलीन ऑक्साइड विवाद की प्रारम्भिक लहर

अप्रैल 2024 में, मसाला बोर्ड को हांगकांग और सिंगापुर दोनों के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरणों से नोटिस मिला, जिसमें दावा किया गया था कि इंटीग्रेटेड कंपनी एमडीएच प्राइवेट लिमिटेड और एवरेस्ट फूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड के कुछ नमूने एथिलीन ऑक्साइड (ETO) की अधिकतम सीमा से ऊपर थे। एथिलीन ऑक्साइड एक कार्सिनोजेनिक पेस्टिसाइड है, जो लगातार उच्च स्तर पर पाए जाने पर कैंसर का कारण बन सकता है।

हांगकांग ने पहले चार उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि सिंगापुर ने बाद में समान कदम उठाया। दोनों निर्णयों ने भारतीय निर्यातकों को उलझन में डाल दिया और अंतरराष्ट्रीय बाजार में विश्वास को हिलाया।

वर्तमान विकास: नमूना परीक्षण और विभागीय कार्रवाई

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने मसाला बोर्ड को निर्देश दिया कि वह निर्यातित मसालों का "प्री‑शिपमेंट टेस्ट" अनिवार्य कर दे। इस प्रक्रिया में एमडीएच के 18 नमूनों और एवरेस्ट के 12 नमूनों की जाँच की गई। परिणामस्वरूप, एमडीएच के सभी 18 नमूनों को मानक के अनुरूप पाया गया, जबकि एवरेस्ट के 4 नमूनों में ETO की सीमा को थोड़ा अधिक पाया गया।

नियंत्रण के हिस्से के तौर पर, केंद्र ने सभी फूड कमिश्नरों को अलर्ट जारी किया और 20 दिनों के भीतर लैब रिपोर्ट प्राप्त करने का आदेश दिया। यह कदम सिर्फ दो ब्रांड तक सीमित नहीं, बल्कि सभी भारतीय मसाला निर्माताओं की उत्पादन इकाइयों से सैंपल एकत्र करने को भी सम्मिलित करता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ एवं नियामक स्थिति

इन घटनाओं के बीच, अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (ASTA) ने भारतीय मसाला बोर्ड को एक पत्र लिखते हुए कहा कि संयुक्त राज्य में एथिलीन ऑक्साइड एक मान्य एंटी‑माइक्रोबियल फ्यूमिगेंट है, लेकिन इसके लिए स्पष्ट टोलरेंस स्तर निर्धारित हैं। इस प्रकार, अमेरिकी नियामक मानकों में भारत के मसालों को अलग ढंग से देखा जा सकता है।

वहीं, यूरोपीय संघ ने सितंबर 2020 से अप्रैल 2024 तक कुल 527 भारतीय खाद्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें ETO की उच्च मात्रा पाई गई थी। नेपाल भी सिंगापुर और हांगकांग के बाद समान कारणों से कुछ भारतीय मसालों के आयात पर रोक लगाकर इस मुद्दे को विश्व स्तर पर उजागर कर रहा है।

सरकार की उत्तरदायित्वपूर्ण कदम और आगामी योजना

सरकार की उत्तरदायित्वपूर्ण कदम और आगामी योजना

स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने 30 नवंबर 2024 को लोकसभा में विस्तृत जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि "वाणिज्य मंत्रालय के मसाला बोर्ड ने निर्यातकों के लिए एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया है, जिसमें प्री‑शिपमेंट टेस्ट, पैकेजिंग, भंडारण और ट्रांसपोर्ट में ETO के जोखिम को न्यूनतम करने के उपाय शामिल हैं।"

इन दिशानिर्देशों में मुख्य रूप से तीन बिंदु हैं:

  1. सभी निर्यातित मसालों का शिपमेंट से पहले फेज‑डिपेंडेंट टेस्टिंग।
  2. उत्पादन प्रक्रिया में एंटी‑माइक्रोबियल एजेंट की वैकल्पिक तकनीकों का प्रयोग।
  3. बाजार में प्रवेश से पहले लैब‑टेस्ट रिपोर्ट का अनिवार्य संलग्न होना।

भविष्य में, यदि किसी भी बैच को फिर भी गैर‑अनुपालक माना जाता है, तो तत्काल रिट्रैक्शन और पुनः परीक्षण का प्रावधान है। यह तंत्र न केवल निर्यातकों को सतर्क करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के भरोसे को भी पुनर्स्थापित करेगा।

व्यापारिक प्रभाव और उद्योग की प्रतिक्रिया

मसाला उद्योग के प्रमुख विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रकार की सख्त निगरानी ने भारतीय ब्रांडों को दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ दे सकता है। "अगर हम अभी दृढ़ कदम उठाएँगे, तो भविष्य में EU या US जैसे बड़े बाज़ारों में निर्यात बाधा नहीं आएगी," एक प्रमुख उद्योग सलाहकार ने कहा। दूसरी ओर, छोटे स्केल के उत्पादकों को अतिरिक्त लागतों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी की संभावना है।

अंततः, यह मामला भारतीय मसाला उद्योग के लिए एक सीख है: निर्यात मानकों को लगातार अपडेट करते रहना और वैश्विक नियामक परिवेश को समझना आवश्यक है।

आगे क्या होगा? संभावित परिदृश्य

आगे क्या होगा? संभावित परिदृश्य

अगले दो महीनों में, मसाला बोर्ड को सभी परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर एक समेकित सार्वजनिक रिपोर्ट जारी करनी होगी। इस रिपोर्ट में यह बताया जाएगा कि कौन‑से बैच पूरी तरह से सुरक्षित हैं, और किन्हें पुनः प्रक्रिया की आवश्यकता है। साथ ही, भारत की खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (FSSAI) भी इस मुद्दे पर एक राष्ट्रीय कार्यकम शुरू करने की तैयारी कर रही है।

यदि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, विशेषकर EU और US, भारत के सुधारात्मक कदमों को स्वीकार करती हैं, तो मर्यादित प्रतिबंध की जगह एक व्यापक "गुडविल" समझौता हो सकता है। वहीं, यदि फिर भी बड़ी मात्रा में ग़ैर‑अनुपालक नमूने मिलते हैं, तो आगे की सख़्त प्रतिबंधात्मक नीतियां लागू हो सकती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

हांगकांग और सिंगापुर ने भारतीय मसालों पर पूरी पाबंदी क्यों नहीं लगाई?

वाणिज्य मंत्रालय की जानकारी के अनुसार, केवल कुछ विशिष्ट बैचों में एथिलीन ऑक्साइड की मात्रा अनुमत सीमा से अधिक पाई गई। इसलिए व्यापक प्रतिबंध की आवश्यकता नहीं रही, बल्कि लक्षित रिट्रैक्शन और सुधारात्मक कदमों को अपनाया गया।

एमडीएच और एवरेस्ट के किन बैचों को अस्वीकृति मिली?

एमडीएच के 18 नमूनों में से सभी मानक के अनुरूप पाए गए, जबकि एवरेस्ट के 12 में से चार नमूनों में एथिलीन ऑक्साइड की सीमा अधिक थी। इन बैचों को आगे के परीक्षण और संभावित रिट्रैक्शन के तहत रखा गया है।

एथिलीन ऑक्साइड का उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे नियंत्रित है?

अमेरिकी नियामक इसे एंटी‑माइक्रोबियल फ्यूमिगेंट के रूप में मान्य मानते हैं, परंतु टोलरेंस सीमाएं स्पष्ट रूप से तय हैं। यूरोपीय संघ ने इसे कैंसर‑जनक के रूप में वर्गीकृत किया है और कई भारतीय उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत अब इन दोहरे मानकों को ध्यान में रखकर अपने निर्यात मानकों को सुदृढ़ कर रहा है।

भविष्य में भारतीय मसालों की निर्यात प्रक्रिया में क्या परिवर्तन आएंगे?

मसाला बोर्ड ने सभी निर्यातों पर अनिवार्य प्री‑शिपमेंट टेस्टिंग, सख़्त पैकेजिंग मानकों और नियमित लैब‑रिपोर्टिंग को अनिवार्य कर दिया है। यदि कोई बैच गैर‑अनुपालक पाया जाता है, तो तुरंत रिट्रैक्शन और पुनः परीक्षण होगा। यह प्रणाली निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित रहने में मदद करेगी।

छोटे मसाला निर्माताओं को इन नए नियमों से क्या चुनौतियां होंगी?

प्री‑शिपमेंट टेस्टिंग और अतिरिक्त दस्तावेज़ीकरण लागत में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे उत्पाद की कीमत पर असर पड़ेगा। सरकार ने इन छोटे उद्यमों के लिए सब्सिडी और तकनीकी सहायता का प्रावधान किया है ताकि संक्रमण सुगम हो सके।

टिप्पणि (5)

  1. Aakanksha Ghai
    Aakanksha Ghai

    सही बात है कि सरकार ने स्पष्ट किया कि पूरी बैन नहीं लगा है, लेकिन हमें अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। एथिलीन ऑक्साइड जैसी हानिकारक चीज़ें अगर सीमा से बाहर हो जाएँ तो बड़़े नुकसान हो सकते हैं। इसलिए निर्यातकों को सबसे सख्त मानकों का पालन करना चाहिए। सामुदायिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना हमारा कर्तव्य है।

  2. Raj Kumar
    Raj Kumar

    यह स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां अक्सर भारत को निशाना बनाकर आर्थिक लाभ की तलाश में रहती हैं। उनके आंकड़े अक्सर चयनात्मक होते हैं और असली इरादा व्यापारिक दबाव डालना ही होता है। इस तरह की रिपोर्टें जनता को भ्रमित करती हैं और सरकार की सच्ची कोशिशों को कम करके दिखाती हैं। हमें इस पर सतर्क रहना चाहिए।

  3. Seema Sharma
    Seema Sharma

    मसाला उद्योग में ऐसे कदम हमेशा दोहरी तलवार की तरह होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर ये सुधार हमें बेहतर बनाते हैं। छोटे निर्माताओं को थोड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है, पर लंबी अवधि में ब्रांड की विश्वसनीयता बढ़ेगी। जैसा कि कई लोग कहते हैं, सफ़ाई से ही सब कुछ साफ़ रहता है।

  4. King Dev
    King Dev

    सभी को नमस्कार, मैं यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु साझा करना चाहता हूँ जो इस मामले को समझने में मदद करेंगे। पहले यह समझना ज़रूरी है कि एथिलीन ऑक्साइड की सीमा निर्धारित करने के पीछे वैज्ञानिक आधार है, न कि कोई मनमाना फ़ैसला। जब कोई बैच इस सीमा से ऊपर जाता है, तो वह सिर्फ नियामक नियम नहीं तोड़ता, बल्कि संभावित स्वास्थ्य जोखिम भी उत्पन्न करता है। इसलिए प्री‑शिपमेंट टेस्ट को अनिवार्य बनाना एक बड़़ा कदम है, क्योंकि इससे समस्या उत्पन्न होते ही पकड़ में आती है। दूसरा, उत्पादन प्रक्रिया में वैकल्पिक एंटी‑माइक्रोबियल एजेंटों का उपयोग लागत बढ़ा सकता है, लेकिन यह दीर्घकालिक रूप से विदेशी बाजारों में भरोसा बनाता है। तीसरा, बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भी इस नई दिशा के साथ तालमेल बिठाना पड़ेगा, क्योंकि निर्यातकों को अतिरिक्त दस्तावेज़ीकरण की जरूरत पड़ेगी। चौथा, छोटे निर्माताओं के लिए सरकार ने सब्सिडी की योजना बनाई है, जिससे उनका बोझ हल्का हो सके। पाँचवाँ, इस प्रक्रिया में कच्चे माल की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए आपूर्तिकर्ताओं को भी सख़्त निगरानी में रखना पड़ेगा। छठा, उपभोक्ता को भी सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि अंत में उनका स्वास्थ्य सबसे बड़ा मापदंड है। सातवाँ, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूरोपीय संघ और यूएस के मानक में अंतर है, इसलिए भारत को दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा। आठवाँ, नियमित लैब‑रिपोर्टिंग में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बना सकता है। नौवाँ, यदि कोई बैच फिर भी गैर‑अनुपालक पाया जाता है, तो रिट्रैक्शन प्रक्रिया को तेज़ी से लागू करना चाहिए, ताकि बाजार में दूषित उत्पाद न पहुंचे। दसवाँ, यह प्रणाली न केवल निर्यातकों को सुरक्षा प्रदान करेगी, बल्कि घरेलू बाजार में भी बेहतर मानक स्थापित करेगी। ग्यारहवाँ, इस पहल से भारतीय मसालों की ब्रांड वैल्यू में इज़ाफ़ा होगा और निर्यात में नई ऊँचाईयों को छूआ जा सकता है। बारहवाँ, यह कदम छोटे किसान और कारीगरों को भी लाभ पहुंचाएगा, क्योंकि उन्हें अपने उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार तैयार करने की प्रेरणा मिलेगी। तेरहवाँ, इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सभी संबंधित विभागों को मिलकर काम करना होगा, न कि अलग‑अलग। चौदहवाँ, इस पहल में मीडिया की भूमिका भी अहम है, क्योंकि सही जानकारी पहुँचाने से अति‑भय नहीं पड़ेगा। पंद्रहवाँ, अंत में यह कहा जा सकता है कि अगर हम सब मिलकर इस दिशा में मेहनत करेंगे, तो भारतीय मसालों का भविष्य उज्ज्वल रहेगा।

  5. Abhi Rana
    Abhi Rana

    बिलकुल सही कहा, लेकिन हमें हर बात को इतना भी नहीं ले लेना चाहिए;;; हर रिपोर्ट का अपना मकसद होता है।

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