जन्माष्टमी के बाद कई वैष्णव घरों में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है। इसे भगवान कृष्ण ने अपने गांव वालों की मदद करने के लिए उठाए गए पहाड़ को बचाने की स्मृति में किया जाता है। इस पूजा में भक्त लोग छोटी-छोटी मिट्टी या धातु की गोलियों को गढ़ बनाकर, उसे परिक्रमा करते हैं और प्रसाद अर्पित करते हैं।
पहले तो साफ‑सुथरा स्थान चुनें – अक्सर घर के सामने या आँगन में एक छोटा मंच बनाते हैं। आप मिट्टी, कागज या प्लास्टिक की गोला तैयार कर सकते हैं; सबसे आसान है दो-तीन कपड़े की रेत ले कर उसे गोल आकार देना। इसके बाद पूजा का सामान रख दें: पान, फूल, दीपक, नैवेद्य (भात, मिठाई), और भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र।
सफाई के समय नीरज के साथ थोड़ा हल्का संगीत बजाना भी अच्छा रहता है; इससे माहौल शान्त और पवित्र बनता है। अगर आपके पास धूप नहीं तो इलेक्ट्रिक दीया चलाएँ, पर ध्यान रखें कि वह सुरक्षित हो।
जब सब तैयार हो जाए, तो पहले भगवान कृष्ण को नमस्कार करें और श्लोक पढ़ें – "गोवर्धनधारी" वाला मंत्र सबसे लोकप्रिय है। फिर गोला (गणना) को धीर‑से‑धीरे घुमा कर परिक्रमा शुरू करें, जबकि आप या परिवार वाले गीता या भजन गा सकते हैं। इस दौरान हर चार बार गोले के ऊपर थोड़ा पानी और पान डालें; यह जल‑संकट से बचाव का प्रतीक माना जाता है।
परिक्रमा के बाद नैवेद्य अर्पित करें – सबसे आम मिठाई मोतीचूर या हलवा होती है। भगवान को भेंट देने के बाद, सभी लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और प्रसाद बाँटते हैं। अंत में साफ़ पानी से हाथ‑पैर धोएँ और घर की सफाई कर समाप्ति मानें।
ध्यान रखें कि पूजा का समय संक्षिप्त हो – आमतौर पर 30‑45 मिनट पर्याप्त होते हैं। अगर आप व्यस्त हों तो भी इस छोटे-से अनुष्ठान से आपके जीवन में शान्ति और खुशहाली आएगी।
भक्तों के बीच एक मजेदार बात यह है कि कई घरों में गोवर्धन पूजा के बाद सभी लोग मिलकर झटपट लड्डू बनाते हैं या मिठाई बाँटते हैं; इससे सामुदायिक भावना और बढ़ती है। आप भी अपने पड़ोसियों को आमंत्रित करके इस परंपरा को और रंगीन बना सकते हैं।
अगर पहली बार कर रहे हों तो डरने की ज़रूरत नहीं – बस दिल से भगवान कृष्ण को याद रखें, सादगी से पूजा करें और आनंद लें। यही असली भावना है गोवर्धन पूजा की, जो हमें एक दूसरे के साथ जुड़ती है और जीवन में संतुलन लाती है।
गोवर्धन पूजा 2024 का आयोजन 2 नवंबर को होगा। इस पावन हिन्दू त्योहार में लोग भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं और गोवर्धन परिक्रमा करते हैं, जो मथुरा स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों ओर की जाती है। परिक्रमा की कुल दूरी 22 किलोमीटर होती है और यह लगभग 5-6 घंटे में पूरी होती है। यह पर्व प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण के महत्व को दर्शाता है। इस दिन एक गाय के गोबर की पहाड़ी बनाई जाती है, जिसकी परिक्रमा की जाती है।